तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ।
ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि।।
ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि।।
अर्थ अतः तेरे लिए कर्त्तव्य अकर्त्तव्य की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण है, ऐसा जानकर तू इस लोक में शास्त्रविधि से नियत कर्त्तव्य कर्म करने योग्य है अर्थात् तुझे शास्त्रविधि के अनुसार कर्त्तव्य कर्म करने चाहिए। व्याख्या गीता अध्याय 16 का श्लोक 24
भगवान कहते हैं अर्जुन को कि क्या कर्त्तव्य है और क्या अकर्त्तव्य है इस ज्ञान को जानने के लिए शास्त्र (श्री गीता जी) प्रमाण है।
तू इस लोक में शास्त्र विधि से नियत कर्म कर अर्थात् हे प्यारे सज्जनों जिनकी महिमा शास्त्रों ने गाई और जिनके कर्म शास्त्रों के अनुसार होते हैं, ऐसे संत महापुरूषों के आचरणों और विचारों के अनुसार चलना भी शास्त्रों के अनुसार चलना होता है। शास्त्रों के अनुसार चलने से ही श्रेष्ठ पुरूष परम गति को प्राप्त हुए हैं।
श्री गीता शास्त्र भगवान का गीत है इसलिए हम इसको भगवद् गीता कहते हैं।
‘‘ जय श्री कृष्णा ’’
तू इस लोक में शास्त्र विधि से नियत कर्म कर अर्थात् हे प्यारे सज्जनों जिनकी महिमा शास्त्रों ने गाई और जिनके कर्म शास्त्रों के अनुसार होते हैं, ऐसे संत महापुरूषों के आचरणों और विचारों के अनुसार चलना भी शास्त्रों के अनुसार चलना होता है। शास्त्रों के अनुसार चलने से ही श्रेष्ठ पुरूष परम गति को प्राप्त हुए हैं।
श्री गीता शास्त्र भगवान का गीत है इसलिए हम इसको भगवद् गीता कहते हैं।
‘‘ जय श्री कृष्णा ’’