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यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।।
अर्थ जो मनुष्य गीता शास्त्र विधि को छोड़कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि, न सुख शांति को और न परम गति को प्राप्त होता है। व्याख्या गीता अध्याय 16 का श्लोक 23 जो मनुष्य गीता शास्त्र की विधि को छोड़कर अपनी कामना से मन माना आचरण करते हैं, वह असुरी मनुष्य ना मन की शुद्धि कर पाते हैं और न सुख शांति को और ना परम गति को प्राप्त कर पाते हैं। उनको परम गति मिले भी कैसे क्योंकि वह परम गति को मानते ही नहीं, अगर मानते भी है, तो भी परम गति उनको मिल नहीं सकती, क्योंकि काम, क्रोध, लोभ के कारण उनके कर्म ही ऐसे होते हैं।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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