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एतैर्विमुक्तः कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नरः।
आचरत्यात्मनः श्रेयस्ततो याति परां गतिम्।।
अर्थ हे कौन्तेय ! इन नर्क के तीनों दरवाजों से रहित हुआ जो मनुष्य अपने कल्याण का आचरण करता है, वह उससे परम गति को प्राप्त हो जाता है। व्याख्या गीता अध्याय 16 का श्लोक 22 भगवान कहते हैं कि हे कौंतेय इन नर्क के तीनों दरवाजों से रहित हुआ मनुष्य अर्थात् काम, क्रोध, लोभ तीनों का त्याग का विचार रखना, इसके वश में ना होना ही इनसे रहित होना है।
इन तीनों के कारण ही मनुष्य कल्याण का आचरण नहीं कर पाता कारण यह है कि यह तीनों कारण रहने पर मनुष्य ध्यान, समाधि, जप नहीं कर पाता। दैवी सम्पदा के साधक काम, क्रोध, लोभ के वश में ना होकर अपने कल्याण (मुक्ति) का आचरण करते हैं जिससे वह देह त्याग के बाद परम गति को प्राप्त होते हैं।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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