आढ्योऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया।
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिताः।।
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिताः।।
अर्थ हम धनवान हैं, बहुत से मनुष्य हमारे पास हैं, हमारे समान दूसरा कौन है, हम खूब यज्ञ करेंगे, दान देंगे और मौज करेंगे। इस तरह वे अज्ञान से मोहित रहते है। व्याख्यागीता अध्याय 16 का श्लोक 15 - Geeta 16.15
असुरी स्वभाव वाले ऐसे बात करते है दूसरे से कि आप इतने घूमे-फिरे हो आपको बहुत से लोग मिले होंगे आपको हमारे जैसा आदमी मिला है क्या आज तक। वह कहते है कि हम ऐसा यज्ञ करेंगे ऐसा दान देंगे कि सबके होश उड़ा देंगे। क्योंकि मामूली यज्ञ, दान से किसी को क्या पता लगेगा कि हमने यज्ञ-दान किया है हम ऐसा यज्ञ करेंगे कि हमारा नाम अखबारों में आएगा ऐसे लोग मंदिर, धर्मशाला में कमरा इसलिए बनवाते है कि उनके नाम की प्लेट कमरे पर लगे और लोग हमेशा उनको याद करें।
असुरी स्वभाव के मनुष्य जीते जी तो अशांत व दुखी रहते हैं परन्तु मरने के बाद क्या होता है इस बात को आगे के श्लोक में जानते हैं।
असुरी स्वभाव के मनुष्य जीते जी तो अशांत व दुखी रहते हैं परन्तु मरने के बाद क्या होता है इस बात को आगे के श्लोक में जानते हैं।