चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रितारू।
कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चितारू।।
कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चितारू।।
अर्थ वे मृत्युपर्यन्त रहने वाली अपार चिन्ताओं का आश्रय लेने वाले, पदार्थों का संग्रह और उनका भोग करने में ही लगे रहने वाले और ‘जो कुछ है, वह इतना ही है’ ऐसा निश्चय करने वाले होते हैं। व्याख्यागीता अध्याय 16 का श्लोक 11
असुरी मनुष्य के भीतर इतनी चिन्ताएँ रहती है जिसका कोई अंत नहीं जब तक प्रलय (मौत) नहीं आती, तब तक उनकी चिन्ताएँ मिटती नहीं, ऐसी मृत्यु तक रहने वाली चिन्ताओं का फल भी प्रलय ही होता है, अर्थात् बार-बार जन्म मरण ही होता है।
भोग और धन ईक्ट्ठा करने में लगा व्यक्ति अन्धा हो जाता है। वह ना तो ब्रह्म को जान सकता और ना ही परब्रह्म को जान सकता। उनकी यह सोच होती है कि संसार में भोग भोगने के सिवाय कुछ होता ही नहीं वह असुरी पाप-पुण्य पुनर्जन्म को नहीं मानते।
भोग और धन ईक्ट्ठा करने में लगा व्यक्ति अन्धा हो जाता है। वह ना तो ब्रह्म को जान सकता और ना ही परब्रह्म को जान सकता। उनकी यह सोच होती है कि संसार में भोग भोगने के सिवाय कुछ होता ही नहीं वह असुरी पाप-पुण्य पुनर्जन्म को नहीं मानते।