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काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः।
मोहाद्गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः।।
अर्थ कभी पूरी न होने वाली कामनाओं का आश्रय लेकर दम्भ, अभिमान और मद में चूर रहने वाले तथा अपवित्र व्रत धारण करने वाले मनुष्य मोह के कारण दुरा ग्रहों को धारण करके संसार में विचरते रहते हैं। व्याख्यागीता अध्याय 16 का श्लोक 10 कामनाएँ (इच्छाएँ) आज तक किसी की पूरी नहीं हुई जब से यह ब्रह्म बना तब से ही जीव कामनाओं का गुलाम बनकर आगे से आगे इस जन्म मरण के चक्कर में घूमता रहता है, अगर कामना पूरी हो जाती तो आज इस पृथ्वी पर करोड़ों लोग ना जन्मते सब कामना पूरी होने के बाद मुक्ति में चले जाते। इसलिए भगवान कहते है कभी ना पूरी होने वाली कामनाओं का आश्रय लेकर असुरी मनुष्य अपने अहंकार में चूर रहते हैं। यह मोह के कारण अपवित्र कर्मों को धारण करके संसार में विचरते रहते हैं।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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