आत्मसम्भाविताः स्तब्धा धनमानमदान्विताः।
यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम्।।
यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम्।।
अर्थ अपने को सबसे अधिक पूज्य मानने वाले, अकड रखने वाले और धन और मान के मद में चूर रहने वाले वे मनुष्य दम्भ से अविधि पूर्वक नाम मात्र के यज्ञों से भजन करते है। व्याख्यागीता अध्याय 16 का श्लोक 17
पिछले श्लोक में मरने के बाद भयंकर नर्क बताया अब उनके भविष्य का क्या परिणाम होता है यह बता रहें हैं।
वे धन से अपने को मन ही मन में बड़ा मानते है। वह अपने आप को पुजनीय समझते हैं। वह मान बडाई के लिए दूसरों से ज्यादा यज्ञ दान करते है कि कोई मुझसे बड़ा हो ही नहीं सकता। असुरी मनुष्य के सब कर्म दिखावटी होते है और भीतर मन में अहंकार होता है कि दूसरों से बड़ा यज्ञ करेंगे। धन के अहंकार में चूर दम्भी मनुष्य दिखावे के लिए यज्ञ करते हैं।
वे धन से अपने को मन ही मन में बड़ा मानते है। वह अपने आप को पुजनीय समझते हैं। वह मान बडाई के लिए दूसरों से ज्यादा यज्ञ दान करते है कि कोई मुझसे बड़ा हो ही नहीं सकता। असुरी मनुष्य के सब कर्म दिखावटी होते है और भीतर मन में अहंकार होता है कि दूसरों से बड़ा यज्ञ करेंगे। धन के अहंकार में चूर दम्भी मनुष्य दिखावे के लिए यज्ञ करते हैं।