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अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृताः।
प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ।।
अर्थ कामनाओं के कारण तरह-तरह से भ्रमित चित वाले मोह-जाल में अच्छी तरह से फसे हुए तथा पदार्थों और भोगों में अत्यन्त आसक्त रहने वाले मनुष्य भयंकर नरक में गिरते हैं। व्याख्यागीता अध्याय 16 का श्लोक 16  कामनाओं के कारण अनेक तरह से भ्रमित चित वाले अर्थात् उन असुरी व्यक्तियों में एक निश्चय ना होने के कारण उनका मन बन्दर की तरह इधर-उधर भागता रहता है। उनका चित एक बात पर स्थिर नहीं रहता। अलग-अलग विषयों में भटकता रहता है। ऐसे चित वाले मोह और कामना के कारण बन्ध कर भयंकर नर्क में गिरते हैं। ऐसे मनुष्य तो जीते जी भी नर्क में ही है। भगवान के बनाये सॉफ्टवेयर में कर्मों का गणित अपने आप अदृश्य रूप में होता है कारण कि जैसा भाव वैसी क्रिया अपने आप होती है।
भगवान ने कहा भयंकर नर्क में गिरते है। अब नर्क तो नर्क होता है इसमें भयंकर कहने का भाव है जैसे अधोगति होती है पशु, पक्षी बनना एक भयंकर अधोगति होती है। जैसे सांप होते है उनके पैर भी नहीं होते पेट रगड़कर चलता है। गोबर के कीड़े, सुअर आदि बनना, ऐसे ही भयंकर नर्क में गिरते हैं।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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