आशापाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः।
ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान्।।
इदमद्य मया लब्धमिमं प्राप्स्ये मनोरथम्।
इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनर्धनम्।।
असौ मया हतः शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि।
ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी।।
ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान्।।
इदमद्य मया लब्धमिमं प्राप्स्ये मनोरथम्।
इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनर्धनम्।।
असौ मया हतः शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि।
ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी।।
अर्थ आशा की सैकड़ों फाँसियों से बंधे हुए वे मनुष्य काम-क्रोध के परायण होकर पदार्थों का भोग करने के लिए अन्याय पूर्वक धन इकट्ठा करने की चेष्टा करते रहते हैं।
इतनी वस्तुएँ तो हमने आज प्राप्त कर ली और अब इस मनोरथ को प्राप्त कर लेंगे। इतना धन तो हमारे पास है ही, इतना (धन) फिर भी और हो जायेगा।
वह शत्रु तो हमारे द्वारा मारा गया और उन दूसरे शत्रुओं को भी हम मार डालेंगे। हम ईश्वर हैं, हम भोग भोगने वाले है, हम सिद्ध है, हम बड़े बलवान और सुखी है। व्याख्यागीता अध्याय 16 का श्लोक 12-14
असुरी मनुष्य आशा की सैकड़ों फांसियों से बंधे रहते हैं जैसे इतना धन हो जाएगा इतना मान सम्मान हो जाएगा आदि। आशा कि फाँसी से बंधे मनुष्य के पास करोड़ों रूपये हो जाए तो भी उनका मंगतापन नहीं जाता।
काम क्रोध के परायण होकर पदार्थों का भोग करने के लिए, लोगों को अन्याय पूर्वक लूटने की कोशिश करते है।
लोगों को लूट कर यह सोचते है कि आज इतना धन प्राप्त कर लिया कल इससे भी ज्यादा इक्ट्ठा कर लूँगा।
वह असुरी मनुष्य कहते हैं कि वह मेरे विपरीत चल रहा था उसको हमने मार दिया और भी कोई हमसे वैरभाव रखेगा तो उनको भी मार देंगे।
असुरी स्वभाव वाले मनुष्यों के पास काम और क्रोध का ही बल होता है। वे नाशवान धन से अपने को बलवान मानते है। वे कहते है कि मैं ही ईश्वर हूँ। मैं ही सब भोग भागने वाला हूँ। मैं ही बलवान और सुखी हूँ, मेरे सामने दूसरा कोई भी नहीं ऐसे अहंकार और अज्ञान से लिप्त रहते है असुरी मनुष्य।
काम क्रोध के परायण होकर पदार्थों का भोग करने के लिए, लोगों को अन्याय पूर्वक लूटने की कोशिश करते है।
लोगों को लूट कर यह सोचते है कि आज इतना धन प्राप्त कर लिया कल इससे भी ज्यादा इक्ट्ठा कर लूँगा।
वह असुरी मनुष्य कहते हैं कि वह मेरे विपरीत चल रहा था उसको हमने मार दिया और भी कोई हमसे वैरभाव रखेगा तो उनको भी मार देंगे।
असुरी स्वभाव वाले मनुष्यों के पास काम और क्रोध का ही बल होता है। वे नाशवान धन से अपने को बलवान मानते है। वे कहते है कि मैं ही ईश्वर हूँ। मैं ही सब भोग भागने वाला हूँ। मैं ही बलवान और सुखी हूँ, मेरे सामने दूसरा कोई भी नहीं ऐसे अहंकार और अज्ञान से लिप्त रहते है असुरी मनुष्य।