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इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयाऽनघ।
एतद्बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्कृतकृत्यश्च भारत।।
अर्थ हे भारत ! इस प्रकार यह अत्यन्त गोपनीय शास्त्र मेरे द्वारा कहा गया है। हे भरतवंशी अर्जुन ! इसको जानकर मनुष्य ज्ञानवान तथा कृतकृत्य हो जाता है। व्याख्यागीता अध्याय 15 का श्लोक 20 - Geeta 15.20 हे निष्पाप अर्थात् जो दोष दृष्टि से रहित है जिसका मन शुद्ध है वह निष्पाप होता है वही भक्ति का पात्र होता है। अत्यंत गोपनीय शास्त्र दोष दृष्टि रहित मनुष्य के सामने ही कहा जाता है। दोष दृष्टि होने के कारण जैसे ज्ञान का अहंकार अपने में अच्छाई का अभिमान होने से दूसरे में बुराई दिखती है और दूसरे सत्य ज्ञानियों में बुराई देखने से अपने में अच्छाई व ज्ञानी बनने का अभिमान आता है।
यदि दोष दृष्टि रखने वाले अज्ञानी मनुष्य के सामने कहंे कि इस सृष्टि के रचयिता निर्गुण निराकार परम ही है और जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है। तब तब वह अपने रूप को रचते हैं और परम निर्गुण निराकार ही अपने सगुण रूप में कृष्ण बनकर आए हैं। इस हिसाब से श्री कृष्ण भगवान ही इस सृष्टि के रचयिता हुए। तब जो दोष दृष्टि रखने वाले मूढ मनुष्य हैं वह इस बात को नहीं मानते वह तो श्री कृष्ण भगवान को एक राजा ही मानते हैं। लेकिन भगवान ने अर्जुन को अपना विश्वरूप दिखाया जिसको देखकर अर्जुन निष्पाप हो गए, इस प्रकार श्री कृष्ण कहते हैं यह अत्यंत गोपनीय (परम रहस्य) शास्त्र मेरे द्वारा कहा गया है।
इस श्री गीता शास्त्र को जो मनुष्य तत्व से जान लेता है। वह ज्ञानवान ज्ञाता हो जाता है अर्थात् उसके लिए कुछ भी जानना शेष नहीं रहता क्योंकि उसने जानने योग्य पुरुषोत्तम को जान लिया।
‘‘ जय श्री कृष्णा ’’
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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