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यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम्।
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत।।
अर्थ हे भारत ! इस प्रकार जो मोह रहित मनुष्य मुझे पुरूषोत्तम जानता है, वह सर्वज्ञ सब प्रकार से मेरा ही भजन करता है। व्याख्यागीता अध्याय 15 का श्लोक 19 परमात्मा को तत्व से जानने में मोह ही बंधन है, किसी वस्तु या व्यक्ति का तभी ज्ञान हो सकता है जब वह उनसे दूर होकर यानि दृष्टा बनकर देखता है। ऐसे ही मोह त्याग करके जो मनुष्य सर्वत्र देखता है वह मुझ पुरुषोत्तम को जानता है। मोह के रहते संपूर्ण संसार प्रकृति ही नजर आता है, और मोह का त्याग करते ही संपूर्ण प्रकृति परमात्मा में नजर आती है। जो मोह त्याग चुके हैं वह योगी सर्वज्ञ (सम्पूर्ण दिशाओं में) सब प्रकार से मुझको ही भजते हैं (ध्यान, समाधि, चिंतन, मनन, सब कुछ परम को भजना ही होता है)
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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