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सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्।।
अर्थ मैं ही सम्पूर्ण प्राणियों के हृदय में स्थित हूँ तथा मुझसे ही स्मृति ज्ञान और अपोहन होता है। सम्पूर्ण वेदों के द्वारा मैं ही जानने योग्य हूँ। वेदों के तत्त्व का निर्णय करने वाला और वेदों को जानने वाला भी मैं ही हूँ। व्याख्यागीता अध्याय 15 का श्लोक 15 भगवान कहते हैं मैं ही संपूर्ण प्राणियों के हृदय में स्थित हूँ और मुझसे ही समृति (किसी बात की बोली हुई जानकारी को दोबारा याद आ जाना स्मृति होता है) और मुझसे ही ज्ञान और अपोहन दुख होता है।
·  परमात्मा ही सबके हृदय में आत्म रूप से विराजमान है
·  परमात्मा ही सबकी विवेक बुद्धि है ·  परमात्मा ही ज्ञान है, बाकी सब अज्ञान है ·  परमात्मा ही सबके दुखों का समय रूप से नाश करते हैं परमात्मा कहते हैं कि वेद (ज्ञान) अनेक हैं पर उन सबमें जानने योग्य मैं एक ही हूँ अर्थात् सब कुछ एक परमात्मा ही है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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