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गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा।
पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।
अर्थ मैं ही पृथ्वी में प्रविष्ट होकर अपनी शक्ति से समस्त प्राणियों को धारण करता हूँ और मैं ही रस स्वरूप चन्द्रमा होकर समस्त औषधियों, वनस्पतियों को पुष्ट करता हूँ। व्याख्यागीता अध्याय 15 का श्लोक 13 परमात्मा ही पृथ्वी में प्रवेश करके इस पृथ्वी पर स्थित संपूर्ण चल-अचल प्राणियों को धारण करते हैं, अर्थात् पृथ्वी में जो धारण शक्ति देखने में आती है। वह धारण शक्ति पृथ्वी की नहीं परमात्मा की है। पृथ्वी पर अनंत रचना से यह समझना चाहिए कि यह रचना पृथ्वी की ना होकर ईश्वर की ही रचना है। गुरुत्वाकर्षण शक्ति भी ईश्वर है।
गेहूं, बाजरा, चना, फल, फूल आदि सब औषधि चंद्रमा की पोषण शक्ति है, चंद्रमा के द्वारा पुष्ट हुए अन्न का भोजन करने से ही मानव, पशु, पक्षी आदि समस्त प्राणी जीवित रहते हैं, चंद्रमा की यह पोषण शक्ति उसकी अपनी ना होकर परमात्मा की ही है, परमात्मा ही चंद्रमा को माध्यम बनाकर सबका पोषण करते हैं।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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