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सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजरू कर्मणि भारत ।
ज्ञानमावृत्य तु तमरू प्रमादे सञ्जयत्युत ।।
अर्थ हे भारत ! सत्वगुण सुख में और रजोगुण कर्म में लगाकर मनुष्य पर विजय करता है, परन्तु तमोगुण ज्ञान को ढक कर एवं प्रमाद में लगाकर मनुष्य पर विजय करता है। व्याख्यागीता अध्याय 14 का श्लोक 9 सत्वगुण सुख व ज्ञान से लगता है
रजोगुण कर्म व उसके फल की इच्छा से लगता है ।
तमोगुण अज्ञान से लगता है।
इन तीनों गुणों के भावों के भवसागर में फंसा जीव जन्म-मरण के गोते लगा रहा है, आज पूरी धरती के मानव इन्हीं तीनों गुणों के अन्दर विचरण कर रहे हैं। कुछ लोग सुख व ज्ञान के लिए प्रभु भक्ति करते हैं। कुछ लोग इच्छाओं के भोग के लिए ईश्वर स्तुति करते हैं। और बाकी अज्ञानी मानव जड़ बुद्धि कीड़े मकोड़ों की तरह पृथ्वी पर विचरण करते हैं। ये पशुवत जीवन व्यतीत करते हैं।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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