तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम् ।
सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ ।।
सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ ।।
अर्थ हे पाप रहित अर्जुन ! उन गुणों में सत्वगुण निर्मल होने के कारण प्रकाशक और निर्विकार है। वह सुख की आसक्ति से और ज्ञान की आसक्ति से देही को बाँधता है।
व्याख्यागीता अध्याय 14 का श्लोक 6
तीनों गुणों में सबसे उच्च स्थान सत्व गुण का आता है। यह गुण निर्मल होने के कारण पूरी मानव जाति में ज्ञान का प्रकाश करने वाला है। यानि इस गुण के मनुष्य अपने भीतर ज्ञान का प्रकाश प्रकट करते हैं तथा पूरी मानवता को ज्ञान रूपी प्रकाश उज्जवल करते हैं। यह गुण वैसे तो अपने आप में परिपूर्ण है, कोई विशेष कमी नहीं है। लेकिन मनुष्य इस गुण से भी बंध जाता है, कारण इस गुण के मनुष्य के पास तमाम ऐश्वर्य, सुख होता है तथा ज्ञान रूपी धन होता है, सांसारिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान से परिपूर्ण होता है, ऐसे लोगों को अपने सुख व ज्ञान का अभिमान हो जाता है, अभिमान ही ‘‘मैं’’ है और इस ‘‘मैं’’ का अंहकार ही बंधन है। सत्वगुणी व्यक्ति यदि सुख तथा ज्ञान की आसक्ति ना रखें तो वह मुक्ति प्राप्त कर सकता है, लेकिन गुण का नियम है कि जो माया से मोहित हो गया जो गुण से बंध गया, वह जन्म-मरण के चक्रव्यूह में फंस जाता है।