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सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसम्भवाः।
निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम्।।
अर्थ हे महाबाहो ! प्रकृति से उत्पन्न होने वाले, सत्व, रज और तम ये तीनों गुण अविनाशी जीवात्मा को देह में बांध देते हैं। व्याख्यागीता अध्याय 14 का श्लोक 5 प्रकृति से उत्पन्न होने वाले सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण ये तीनों गुण अविनाशी देही (जीव) को देह (शरीर) में बांध लेते हैं। अर्थात् जीव इन गुणों से मोहित होकर इनको पाने की आसक्तियाँ पाल लेता है। जब तक संसार भोग की इच्छा रहती है तब तक जीव मर-मर कर दोबारा जन्म लेता रहता है। यानि जन्म मरण के चक्कर में बन्धा रहता है।
आसक्तियाँ ही बन्धन है उनका त्याग ही मुक्ति है।
सत्य तो यह है कि गुण जीव को नहीं बांधते, जीव खुद ही उनका संग करके बंध जाता है। अगर गुण बाँधने वाले होते तो उनके रहते कोई जीव मुक्त नहीं होता (गुण नहीं बांधते जीव खुद ही इच्छा करके बंधता है।)
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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