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गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान्।
जन्ममृत्युजरादुःखैर्विमुक्तोऽमृतमश्नुते।।
अर्थ देहधारी देह को उत्पन्न करने वाला इन तीनों का अतिक्रमण (उल्लंघन) करके जन्म, मृत्यु और वृद्धावस्था रूप दुखों से रहित हुआ अमरता का अनुभव करता है। व्याख्यागीता अध्याय 14 का श्लोक 20 जितने भी प्राणियों के देह (शरीर) आपको नजर आ रहे हैं, यह सबके सब तीनों गुणों (सत्व, रज, मत) से उत्पन्न हुए हैं। देह को उत्पन्न करने वाले गुण ही है जिस गुण के साथ मनुष्य अपका सम्बन्ध मान लेता है। उसके अनुसार उसको ऊँच-नीच योनियों में जन्म लेना पड़ता है।
सम्पूर्ण ज्ञान से इनके साथ अपना सम्बन्ध ना मानना ही इन गुणों का त्याग करना है, मनुष्य जब मैं शरीर हूँ ऐसा मान लेता है, तब उसमें मृत्यु का भय और वाहवाही की इच्छा पैदा हो जाती है। जब मनुष्य अपने विवेक बुद्धि से यह विचार करता है कि मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ, तब वह मनुष्य जन्म, वृद्धावस्था, मृत्यु जैसे दुखों और भय से रहित हो जाता है। तब वह मनुष्य आत्मा में स्थित रहता हुआ अमरता का अनुभव करता है अर्थात् अपना स्वरूप आत्मा है और आत्मा कभी जन्मती मरती नहीं, आत्मा अजर अमर है इसलिए वह अमरता का अनुभव करता है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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