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इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः।
सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च।।
अर्थ इस ज्ञान का आश्रय लेकर जो मनुष्य मेरे स्वरूप को प्राप्त हो गये हैं, वे सृष्टि के आदि में भी पैदा नहीं होते और महाप्रलय में भी व्याकुल नहीं होते। व्याख्यागीता अध्याय 14 का श्लोक 2 भगवान कहते हैं कि इस ज्ञान को धारण करके मनुष्य मेरे स्वरूप को प्राप्त हो जाते है। वह मनुष्य मृत्यु के समय भी भयभीत नहीं होते और दोबारा जन्म भी नहीं लेते।
जैसे छोटी-छोटी नदियाँ सागर में मिलकर खुद सागर ही बन जाती है। ऐसे ही जो योगी होते हैं वह मृत्यु के बाद परम आत्मा में विलीन हो जाते हैं और खुद परम ही बन जाते हैं। जैसे परमात्मा सत चित आनन्द स्वरूप है, ऐसे ही उनको प्राप्त होने वाले योगी भी सत चित आनन्द स्वरूप हो जाते हैं।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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