ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः।
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः।।
नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति।
गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति।।
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः।।
नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति।
गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति।।
अर्थ सत्वगुण में स्थित मनुष्य ऊर्ध्व लोकों में जाते हैं। रजोगुण में स्थित मनुष्य मृत्युलोक में जन्म लेते हैं और निन्दनीय तमोगुण की वृति में स्थित तामस मनुष्य अधोगति में जाता है। जब विवेकी दृष्टा मनुष्य तीनों गुणों के सिवाय अन्य किसी को कर्त्ता नहीं देखता और अपने को गुणों से पार अनुभव करता है तब वह मेरे स्वरूप को प्राप्त हो जाता है। व्याख्यागीता अध्याय 14 का श्लोक 18-19
1. सत्वगुण में स्थित मनुष्य उत्तम लोक में जाते हैं।
2. रजोगुण में स्थित मनुष्य मृत्युलोक (पृथ्वी लोक) में जन्म लेते हैं।
3. तमोगुण में स्थित मनुष्य अधोगति (पशु, पक्षी, कीट, पतंग) में जाते हैं।
जब मनुष्य दृष्टा बनकर देखता है तो इस सम्पूर्ण प्रकृति में प्रकृति के तीनों गुणों के सिवाय, अन्य किसी और को कर्त्ता नहीं देखता यानि आप जब साक्षी बनकर देखोगे तो इन तीनों गुणों के सिवाय आपको और कोई कर्त्ता नहीं दिखेगा। यह प्रकृति की त्रिगुणी माया ही कर्त्ता है जीव इस माया का संग करके जन्म मरण के चक्र से बंधा रहता है।
जिस समय दृष्टा तीनों गुणों के सिवाय अलग और किसी को कर्त्ता नहीं देखता और तीनों गुणों से अलग यानि गुणों से बाहर जब मनुष्य परमात्मा का अनुभव करता है, तब वह मेरे सत् स्वरूप यानि परमात्मा स्वरूप को प्राप्त करता है। शरीर-प्रकृति का असंग अनुभव करने पर वह आत्म अनुभव करता है, आत्मयुक्त होने पर शांति की प्राप्ति होती है, उस शांति में ना अटकने पर परम प्रभु की प्राप्ति होती है।
2. रजोगुण में स्थित मनुष्य मृत्युलोक (पृथ्वी लोक) में जन्म लेते हैं।
3. तमोगुण में स्थित मनुष्य अधोगति (पशु, पक्षी, कीट, पतंग) में जाते हैं।
जब मनुष्य दृष्टा बनकर देखता है तो इस सम्पूर्ण प्रकृति में प्रकृति के तीनों गुणों के सिवाय, अन्य किसी और को कर्त्ता नहीं देखता यानि आप जब साक्षी बनकर देखोगे तो इन तीनों गुणों के सिवाय आपको और कोई कर्त्ता नहीं दिखेगा। यह प्रकृति की त्रिगुणी माया ही कर्त्ता है जीव इस माया का संग करके जन्म मरण के चक्र से बंधा रहता है।
जिस समय दृष्टा तीनों गुणों के सिवाय अलग और किसी को कर्त्ता नहीं देखता और तीनों गुणों से अलग यानि गुणों से बाहर जब मनुष्य परमात्मा का अनुभव करता है, तब वह मेरे सत् स्वरूप यानि परमात्मा स्वरूप को प्राप्त करता है। शरीर-प्रकृति का असंग अनुभव करने पर वह आत्म अनुभव करता है, आत्मयुक्त होने पर शांति की प्राप्ति होती है, उस शांति में ना अटकने पर परम प्रभु की प्राप्ति होती है।