रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत।
रजरू सत्त्वं तमश्चैव तमरू सत्त्वं रजस्तथा ।।
रजरू सत्त्वं तमश्चैव तमरू सत्त्वं रजस्तथा ।।
अर्थ हे भारत रजोगुण और तमोगुण को दबाकर सत्वगुण बढ़ता है। सत्वगुण और तमोगुण को दबाकर रजोगुण बढ़ता है, वैसे ही सत्वगुण और रजोगुण को दबाकर तमोगुण बढ़ता है।
व्याख्यागीता अध्याय 14 का श्लोक 10
जिस प्रकार जलाशय में वर्षाऋतु में पानी बढ़ जाता है तथा ग्रीष्म ऋतु में पानी घट जाता है, ठीक वैसे ही ये तीनों गुण मनुष्य में घटते-बढ़ते रहते हैं।
जैसे भावों तथा वस्तुओं की तरफ मनुष्य आकर्षित होता है वैसी ही सोच के विचार उत्पन्न होते हैं, भावों के अनुरूप वैसा ही गुण वह पकड़ लेता है ।
ज्यादा भाव ईश्वरीय सोच के है तो सत्वगुण है। काम, क्रोध, लोभ-मोह, अहंकार के विचार ज्यादा है तो रजोगुण हावी हो जाता है। आलस्य, निंद्रा, प्रमाद के भाव ज्यादा है तो तमोगुण प्रभावी हो जाता है ।
जैसे भावों तथा वस्तुओं की तरफ मनुष्य आकर्षित होता है वैसी ही सोच के विचार उत्पन्न होते हैं, भावों के अनुरूप वैसा ही गुण वह पकड़ लेता है ।
ज्यादा भाव ईश्वरीय सोच के है तो सत्वगुण है। काम, क्रोध, लोभ-मोह, अहंकार के विचार ज्यादा है तो रजोगुण हावी हो जाता है। आलस्य, निंद्रा, प्रमाद के भाव ज्यादा है तो तमोगुण प्रभावी हो जाता है ।