श्री भगवानुवाच
परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम्।
यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः।।
परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम्।
यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः।।
अर्थ श्री भगवान बोले - सम्पूर्ण ज्ञानों में उत्तम और परम ज्ञान को मैं फिर कहूँगा, जिसको जानकर सब के सब मुनि लोग इस संसार से मुक्त होकर परम सिद्धि को प्राप्त हो गये हैं।
व्याख्यागीता अध्याय 14 का श्लोक 1
श्री भगवान बोले: परम उत्तम ज्ञान को मैं फिर कहूँगा, अर्थात् परम और उत्तम इन दोनों शब्दों का एक ही अर्थ होता है, परन्तु जहाँ कृष्ण एक अर्थ के दो शब्द एक साथ बोलते हैं वहाँ उनके अर्थ दो ही होते हैं।
उत्तम शब्द का अर्थ है कि यह ज्ञान शरीर संसार से सम्बन्ध विच्छेद करवाता है यानि संसार की माया से वैराग्य करता है तब यह ज्ञान उत्तम (श्रेष्ठ) है।
परम शब्द का अर्थ है कि यह ज्ञान परमात्मा की प्राप्ति कराने वाला है।
परम ज्ञान को फिर कहूँगा जिसको जानकर सब मुनि लोग इस संसार से मुक्त होकर परम सिद्धि को प्राप्त हो गये।
तत्व का मनन करने वाले, जिस मनुष्य का संसार, शरीर, भोगों के साथ अपनापन नहीं रहा वह मुनि कहलाता है।
परम सिद्धि अर्थात् परम एक सबसे सुप्रीम पावर और सिद्धि यानि सुख, भगवान ने गीता में कई जगह सिद्धि-असिद्धि सुख दुख को कहा है परम सिद्धि अर्थ सबसे बड़े सुख आनंद को प्राप्त हो जाता है। यानि मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।
उत्तम शब्द का अर्थ है कि यह ज्ञान शरीर संसार से सम्बन्ध विच्छेद करवाता है यानि संसार की माया से वैराग्य करता है तब यह ज्ञान उत्तम (श्रेष्ठ) है।
परम शब्द का अर्थ है कि यह ज्ञान परमात्मा की प्राप्ति कराने वाला है।
परम ज्ञान को फिर कहूँगा जिसको जानकर सब मुनि लोग इस संसार से मुक्त होकर परम सिद्धि को प्राप्त हो गये।
तत्व का मनन करने वाले, जिस मनुष्य का संसार, शरीर, भोगों के साथ अपनापन नहीं रहा वह मुनि कहलाता है।
परम सिद्धि अर्थात् परम एक सबसे सुप्रीम पावर और सिद्धि यानि सुख, भगवान ने गीता में कई जगह सिद्धि-असिद्धि सुख दुख को कहा है परम सिद्धि अर्थ सबसे बड़े सुख आनंद को प्राप्त हो जाता है। यानि मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।