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तत्क्षेत्रं यच्च यादृक् च यद्विकारि यतश्च यत्।
स च यो यत्प्रभावश्च तत्समासेन मे श्रृणु।।
अर्थ वह क्षेत्र जो है और जैसा है तथा जिस विकारों वाला है और जिससे जो पैदा हुआ है तथा वह जो है और जिस प्रभाव वाला है, वह सब विस्तार से मुझसे सुन। व्याख्यागीता अध्याय 13 का श्लोक 3 - Geeta 13.3 श्री कृष्ण कहते हैं अब मैं तुझे संक्षेप में वह सब कहूँगा कि यह शरीर कैसे हुआ है यह क्षेत्र क्या है इसका गुणधर्म क्या है और इसके भीतर जानने वाला है वह क्या है उसका गुण धर्म क्या है, वह तू मुझसे सुन।
एक बात पर ध्यान दें श्री कृष्ण कहते हैं उस ज्ञान को तू मुझसे सुन, यह नहीं कह रहे हैं कि तू उस ज्ञान को मुझसे जान, ज्ञान को सुना जा सकता है, सुनकर इसे जाना नहीं जा सकता। एक बात हमेशा ध्यान रखें ज्ञान कोई आपको दे नहीं सकता, मार्ग बताया जा सकता है लेकिन चलना आपको ही पड़ेगा और मंजिल मार्ग बताने से नहीं मिलती बताए हुए मार्ग पर चलने से मिलती है और आपके लिए कोई दूसरा भी नहीं चल सकता, आपको खुद ही चलना पड़ेगा। अगर दूसरों के बताने से मुक्ति मिलती तो कृष्ण, राम, सन्तों ने बहुत ज्ञान दिया अब तक तो सबको मुक्ति मिल जाती, मुक्ति के लिए खुद को ही जानना पड़ता है।
आपके पिता की जब मृत्यु होगी, उनकी संपत्ति है वह आपकी हो जाएगी उनका कमाया हुआ धन, घर, किताबंे सब के आप अधिकारी हो जाओगे, लेकिन जो उन्होंने जाना था वह आपको नहीं मिलेगा उसको देने का कोई उपाय भी नहीं। एक बाप उसको अपने बेटे को नहीं दे पाता, उसको दिया भी नहीं जा सकता, उसे तो आपको ही पाना होगा।
शब्द दिए जा सकते हैं, ज्ञान तो नहीं दिया जा सकता, आपके पास भी वे शब्द आ जाएँ जो श्री कृष्ण के पास थे आप भी गीता को कंठस्थ कर लें श्री कृष्ण ने जो कहा था वह आप भी कह सकते हैं लेकिन आप का कहा हुआ शब्दों का रट्टा होगा, कृष्ण का कहा हुआ अनुभव था। आप भी अनुभव करना, कृष्ण जो ज्ञान सुना रहें हैं इस मार्ग पर चलते हैं वे कभी खाली हाथ नहीं लौटते जो इस मार्ग पर जाते हैं वे मंजिल तक जरूर पहँुचते हैं क्योंकि यह मंजिल कहीं दूर नहीं खुद के भीतर छिपी है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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