यावत्सञ्जायते किञ्चित्सत्त्वं स्थावरजङ्गमम्।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्तद्विद्धि भरतर्षभ।।
समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्।
विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति।।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्तद्विद्धि भरतर्षभ।।
समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्।
विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति।।
अर्थ हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन ! स्थावर और जंगम जितने भी प्राणी पैदा होते हैं, उनको तुम क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के संयोग से (उत्पन्न हुए) समझो। जो नष्ट होते हुए सम्पूर्ण प्राणियों में परमेश्वर को नाश रहित और समरूप से स्थित देखता है, वही वास्तव में सही देखता है।
व्याख्यागीता अध्याय 13 का श्लोक 26-27 - Geeta 13.26-27
स्थावर: स्थिर रहने वाले पेड़, पौधे, पहाड़ आदि सब स्थावर हैं
जंगम: चलने वाले मनुष्य, पशु, पक्षी, कीट, पतंग, मगर, मछली, कछुआ, आदि सब जंगम प्राणी है।
चल अचल जितने प्राणी हैं, वह क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के संयोग से उत्पन्न हुए हैं ऐसा समझो और जो नष्ट हो रहे हैं, जितने प्राणी, उन सम्पूर्ण प्राणियों में क्षेत्रज्ञ को अविनाशी और स्थिर देखता है वही सत्य को देखता है।
शरीर मरता है जीव प्रकृति से बन्ध कर आगे से आगे जन्म लेता है, आत्मा ना जन्मती है ना मरती है वह नाश रहित और समरूप से स्थिर है।
जंगम: चलने वाले मनुष्य, पशु, पक्षी, कीट, पतंग, मगर, मछली, कछुआ, आदि सब जंगम प्राणी है।
चल अचल जितने प्राणी हैं, वह क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के संयोग से उत्पन्न हुए हैं ऐसा समझो और जो नष्ट हो रहे हैं, जितने प्राणी, उन सम्पूर्ण प्राणियों में क्षेत्रज्ञ को अविनाशी और स्थिर देखता है वही सत्य को देखता है।
शरीर मरता है जीव प्रकृति से बन्ध कर आगे से आगे जन्म लेता है, आत्मा ना जन्मती है ना मरती है वह नाश रहित और समरूप से स्थिर है।