अन्ये त्वेवमजानन्तः श्रुत्वाऽन्येभ्य उपासते।
तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः।।
तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः।।
अर्थ दूसरे मनुष्य इस प्रकार योग आदि साधनों को नहीं जानते, पर दूसरों से (जीवन मुक्त महापुरूषों से) सुनकर ही उपासना करते हैं। ऐसे वे सुनने के अनुसार आचरण करने वाले मनुष्य भी मृत्यु को तर जाते हैं।
व्याख्यागीता अध्याय 13 का श्लोक 25 - Geeta 13.25
दूसरे मनुष्य जो ध्यानयोग, सांख्ययोग, कर्मयोग, साधनों को नहीं जानते, लेकिन परम प्राप्ति की उत्कष्ठा वाले हैं। ऐसे मनुष्य तत्वज्ञानी महापुरूषों की सेवा करके उनकी आज्ञा का पालन करके इस मृत्यु के भवसागर को पार कर सकते हैं।
कोई भी व्यक्ति अगर गुरू की बातों पर पूर्ण विश्वास करके इस ज्ञान का आचरण करता है और इस ज्ञान के मार्ग पर चलता है वह व्यक्ति भी देह त्याग के बाद परम को प्राप्त होता है।
कोई भी व्यक्ति अगर गुरू की बातों पर पूर्ण विश्वास करके इस ज्ञान का आचरण करता है और इस ज्ञान के मार्ग पर चलता है वह व्यक्ति भी देह त्याग के बाद परम को प्राप्त होता है।