उपद्रष्टाऽनुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः।
परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन्पुरुषः परः।।
परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन्पुरुषः परः।।
अर्थ इस देह में स्थित यह आत्मा वास्तव में परमात्मा ही है। वह साक्षी होने से उपद्रष्टा और यथार्थ सम्मति देने वाला होने से अनुमन्ता, सबका धारण-पोषण करने वाला होने से भर्ता, जीवरूप से भोक्ता, ब्रह्मा आदिका भी स्वामी होने से महेश्वर और शुद्ध सत चित आंनद होने से परमात्मा-ऐसा कहा गया है।
व्याख्यागीता अध्याय 13 का श्लोक 22 - Geeta 13.22
उपद्रष्टा: जीव शरीर के साथ सम्बन्ध रखने से उपद्रष्टा कहा गया है।
अनुमन्ता: यह जीव कोई भी कार्य करने में सहमति अनुमति देता है इसलिए इसको अनुमन्ता कहा गया है।
भर्ता: यह जीव इस शरीर के साथ मिलकर इसको अपना मानकर अन्न-जल आदि से शरीर का पालन-पोषण, सर्दी-गर्मी से रक्षा करता है। इसलिए इसको भर्ता कहा गया है।
भोक्ता: यह प्रकृति के बने शरीर के साथ मिलकर, सुख, दुख आदि को अपना मानता है, तब भोक्ता कहा गया है (भोगने वाला कर्मों का फल भोक्ता)
महेश्वर: जीव अपने को शरीर का स्वामी मानता है, तब वह महेश्वर बन जाता है।
इस देह में स्थिर यह आत्मा वास्तव में परमात्मा ही है, परम$आत्मा ही परमात्मा है। यह आत्मा इस देह में रहता हुआ भी इस, देह से ‘पर’ यानि सम्बन्ध रहित है। आत्मा किसी भी वस्तु, व्यक्ति, इच्छा, मोह से लिप्त नहीं होते यह जीव ही प्रकृति के भोग और गुणों का संग करता है।
अनुमन्ता: यह जीव कोई भी कार्य करने में सहमति अनुमति देता है इसलिए इसको अनुमन्ता कहा गया है।
भर्ता: यह जीव इस शरीर के साथ मिलकर इसको अपना मानकर अन्न-जल आदि से शरीर का पालन-पोषण, सर्दी-गर्मी से रक्षा करता है। इसलिए इसको भर्ता कहा गया है।
भोक्ता: यह प्रकृति के बने शरीर के साथ मिलकर, सुख, दुख आदि को अपना मानता है, तब भोक्ता कहा गया है (भोगने वाला कर्मों का फल भोक्ता)
महेश्वर: जीव अपने को शरीर का स्वामी मानता है, तब वह महेश्वर बन जाता है।
इस देह में स्थिर यह आत्मा वास्तव में परमात्मा ही है, परम$आत्मा ही परमात्मा है। यह आत्मा इस देह में रहता हुआ भी इस, देह से ‘पर’ यानि सम्बन्ध रहित है। आत्मा किसी भी वस्तु, व्यक्ति, इच्छा, मोह से लिप्त नहीं होते यह जीव ही प्रकृति के भोग और गुणों का संग करता है।