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इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासतः।
मद्भक्त एतद्विज्ञाय मद्भावायोपपद्यते।।
अर्थ इस प्रकार क्षेत्र तथा ज्ञान और ज्ञेय को संक्षेप से कहा गया है। मेरा भक्त इसको तत्त्व से जानकर मेरे भाव को प्राप्त हो जाता है। व्याख्यागीता अध्याय 13 का श्लोक 18 - Geeta 13.18 इसी अध्याय के पाँचवें और छठे श्लोक में बताया वह (जो चौबीस तत्व से यह देह बनी है और इसमें जीव सुख दुख, राग द्वेष) वह क्षेत्र है।
सातवें से ग्याहरवें श्लोक तक जो बीस साधन परमात्मा तक पहुँचाने वाले है वह ज्ञान है।
बारहवें से सत्रहवें श्लोक तक जो वर्णन हुआ वह ज्ञेय है भगवान कहते हैं क्षेत्र, ज्ञान, ज्ञेय को अच्छे से समझाया गया है मेरा भक्त इसको विज्ञान (तत्वज्ञान) से जानकर मेरे भाव को प्राप्त हो जाता है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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