ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते।
ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम्।।
ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम्।।
अर्थ वे सम्पूर्ण ज्योति के भी ज्योति और अज्ञान से अत्यन्त परे कहे गये हैं। वे ज्ञान रूप, जानने योग्य, ज्ञान से प्राप्त करने योग्य और सबके हृदय में विराजमान हैं।
व्याख्यागीता अध्याय 13 का श्लोक 17 - Geeta 13.17
वह परम तत्व सम्पूर्ण ज्योतियों का ज्योति अर्थात् सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र, तारा, अग्नि, आदि के जो प्रकाश में दिखते हैं वह परम का ही तेज है और अज्ञान से अत्यन्त परे कहे गए हैं। वह परम निर्गुण निराकार तत्व ज्ञान से ही प्राप्त किए जाते हैं।
परमात्मा सबके हृदय में आत्म रूप से विराजमान होते हुए भी मनुष्य के जानने में नहीं आते, कारण की परम तत्वज्ञान से ही जानने में आते हैं, उनको जानने का दूसरा कोई साधन नहीं। कर्मयोग, सन्यासयोग, ध्यानयोग आदि जिस साधन से परमात्मा को जानेगा, सत्य तो यही है कि वह तत्वज्ञान से ही जानेगा, क्योंकि जानना ज्ञान से ही होता है।
परमात्मा सबके हृदय में आत्म रूप से विराजमान होते हुए भी मनुष्य के जानने में नहीं आते, कारण की परम तत्वज्ञान से ही जानने में आते हैं, उनको जानने का दूसरा कोई साधन नहीं। कर्मयोग, सन्यासयोग, ध्यानयोग आदि जिस साधन से परमात्मा को जानेगा, सत्य तो यही है कि वह तत्वज्ञान से ही जानेगा, क्योंकि जानना ज्ञान से ही होता है।