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अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम्।
भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च।।
अर्थ वे विभाग रहित होते हुए भी सम्पूर्ण प्राणियों में विभक्त की तरह स्थित हैं और वे जानने योग्य सम्पूर्ण प्राणियों को उत्पन्न करने वाले तथा उनका भरण-पोषण करने वाले और संहार करने वाले हैं। व्याख्यागीता अध्याय 13 का श्लोक 16 जैसे एक ही आकाश अलग-अलग घड़ों में अलग-अलग नजर आते हैं। ऐसे एक परमात्मा होते हुए भी सब प्राणियों में अलग-अलग नजर आते है जैसे सूर्य की किरणों में स्थित जल सूक्ष्म होने से, साधारण मनुष्यों के जानने देखने में नहीं आता।
एक परम प्रभु विभाग रहित होने पर भी सब प्राणियों में अलग-अलग नजर आते हैं।
एक परम प्रभु ही सम्पूर्ण प्राणियों का विष्णु रूप से भरण पोषण करने वाले, ब्रह्मा रूप से सबको उत्पन्न करने वाले, रूद्र रूप से संहार करने वाले है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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