क्लेशोऽधिकतरस्तेषामव्यक्तासक्तचेतसाम्।
अव्यक्ता हिगतिर्दुःखं देहवद्भिरवाप्यते।।
अव्यक्ता हिगतिर्दुःखं देहवद्भिरवाप्यते।।
अर्थ उन निराकार ब्रह्म में आसक्त चित्तवाले पुरूषों के साधन में परिश्रम विशेष है क्योंकि देहाभिमानियों के द्वारा अव्यक्तविषयक गति दुःख पूर्वक प्राप्त की जाती है।
व्याख्यागीता अध्याय 12 का श्लोक 5
कृष्ण कहते हैं जो निर्गुण, निराकार, शून्य की उपासना करते हैं पहुँच तो वह भी जाते हैं मुझ तक लेकिन उनका मार्ग कठिन है उनके मार्ग में क्लेश, कष्ट, पीड़ा ज्यादा है जो निराकार की तरफ चलते हैं उनको कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है, पहली कठिनाई तो यह है कि वह अकेला है यात्रा पर उसके साथ कोई सगे साथी नहीं, और आपको पता है कभी अँधेरे रास्ते पर जब आप अकेले गुजरते हैं तो आप गीत गुनगुनाने लगते हो क्योंकि अकेले में डर लगता है। अपना ही गीत सुनकर डर कम होता है, सबसे पहली बात निराकार पथ पर अकेला है, हमारे जीवन का सारा जाल परिवार, पति पत्नी, मित्र, क्लब, होटल, मंदिर, सब अकेले होने से बचने की तरकीबें हैं, कारण कि अकेले होने में डर लगता है।
भक्ति का रास्ता है उस पर प्रभु साथ है, भक्त कितना भी कमजोर हो प्रभु से जुड़कर कमजोरी खो जाती है। भक्त अपने कर्मों को समर्पण कर देता है, वह कहता है मैं नहीं कर रहा हूँ हे प्रभु तुम ही कर रहे हो। वह कहता है अब तेरी मर्जी अब मेरी कोई मर्जी नहीं, अब तू जो करवाएगा मैं करता रहूँगा मैं तेरा अब उपकरण बन गया हूँ, ना मैं सुख की इच्छा करूँगा ना मैं दुख से दुखी होऊँगा, मैं मेरा जीवन हे भगवान तेरे चरणों में समर्पण करता हूँ, कृष्ण कहते हैं ऐसे भक्तों का मैं जल्दी उद्धार कर देता हूँ।
भक्ति का रास्ता है उस पर प्रभु साथ है, भक्त कितना भी कमजोर हो प्रभु से जुड़कर कमजोरी खो जाती है। भक्त अपने कर्मों को समर्पण कर देता है, वह कहता है मैं नहीं कर रहा हूँ हे प्रभु तुम ही कर रहे हो। वह कहता है अब तेरी मर्जी अब मेरी कोई मर्जी नहीं, अब तू जो करवाएगा मैं करता रहूँगा मैं तेरा अब उपकरण बन गया हूँ, ना मैं सुख की इच्छा करूँगा ना मैं दुख से दुखी होऊँगा, मैं मेरा जीवन हे भगवान तेरे चरणों में समर्पण करता हूँ, कृष्ण कहते हैं ऐसे भक्तों का मैं जल्दी उद्धार कर देता हूँ।