अथैतदप्यशक्तोऽसिकर्तुं मद्योगमाश्रितः।
सर्वकर्मफलत्यागंततः कुरु यतात्मवान्।।
श्रेयो हिज्ञानमभ्यासाज्ज्ञानाद्ध्यानं विशिष्यते।
ध्यानात्कर्मफलत्यागस्त्यागाच्छान्तिरनन्तरम्।।
सर्वकर्मफलत्यागंततः कुरु यतात्मवान्।।
श्रेयो हिज्ञानमभ्यासाज्ज्ञानाद्ध्यानं विशिष्यते।
ध्यानात्कर्मफलत्यागस्त्यागाच्छान्तिरनन्तरम्।।
अर्थ अगर मेरे योग (समता) के आश्रित हुआ, तू इस को भी करने में अपने को असमर्थ पाता है तो मन इन्द्रियों को आत्मा में स्थित करके सम्पूर्ण कर्मों के फल की इच्छा का त्याग कर। अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ है, ज्ञान से ध्यान श्रेष्ठ है, और ध्यान से सब कर्मों की फल की इच्छा का त्याग श्रेष्ठ है। क्योंकि त्याग से तत्काल परम शांति प्राप्त हो जाती है।
व्याख्यागीता अध्याय 12 का श्लोक 11-12
भगवान ने कहा सब कर्म मैं कर रहा हूँ तू ऐसा समझ ले अगर यह भी ना हो सके, हो सकता है ऐसा समझना भी तुझे कठिन लगे कि मैं ऐसे कैसे समझ लूँ कि सब आप कर रहे हैं क्योंकि कर तो मैं ही रहा हूँ।
कृष्ण कहते हैं मुश्किल होगा शायद यह भी करना कि तू कर्म मुझमें छोड़ सके, क्योंकि इसमें खुद को छोड़ना पड़ेगा और बहुत कठिन है खुद को छोड़ पाना। तब कहते हैं कि तू एक काम कर कर्म ना छोड़ सके तो कम से कम कर्म का फल ही छोड़ दे, क्योंकि कर्म तो तुझे लगता है कि मैं ही कर रहा हूँ, लेकिन फल तो तू छोड़ ही सकता है क्योंकि फल तो पक्का नहीं है कि तू ही करता है। हे अर्जुन कर्म तू करता है फल अपने आप मिलता है और पक्का नहीं कहा जाता कि तू फल का नियता है, इसलिए कम से कम फल की इच्छा छोड़ दे। इतना ही कर ले कर्म तू कर फल मुझ पर छोड़ दे यह सोच फल परमात्मा ही देने वाला है।
आगे कृष्ण कहते हैं बिना जाने अभ्यास में मत पड़ना कहीं नुकसान ना उठा लो बिना जाने अभ्यास से तो ज्ञान श्रेष्ठ है। ज्ञान का मतलब है जिन्होंने जाना है उनका कहा हुआ ज्ञान, उनका लिखा हुआ ज्ञान, उसको ही स्वीकार कर लेना ही ठीक है और ज्ञान से मुझ परमेश्वर का ध्यान श्रेष्ठ है, क्योंकि शास्त्रों में कितना भी पता चल जाए वह आपका अनुभव तो नहीं, वह तो उनका अनुभव है जिनको आत्म बोध हुआ। इसलिए कृष्ण कहते हैं जितना समय अभ्यास में लगाते हो, उतना समय आप शास्त्र में लगाएं और जितना समय आप शास्त्र में लगाते उससे तो अच्छा है वह समय आप प्रभु के ध्यान में लगाएँ, सबसे बेहतर है सब किताबें बंद करके प्रभु का स्मरण करें।
ध्यान कैसे करना है इसको थोड़ा समझ लें ध्यान करने के लिए आपको कुछ भी नहीं करना। कुछ भी ना करें सिर्फ लेट जाएँ या बैठ जाएँ अपने को पूर्ण रिलैक्स छोड़ दें श्वास भी ना लें अपने आप चलने दें, सिर्फ मुर्दे की तरह पड़े रहें पाँच या दस मिनट में जब मन शांत हो जाए, उस क्षण में एक ही भावना करें जो भी नाम आपको प्यारा लगता हो जैसे ओम-ओम या राम-राम उसको अपने भीतर गूँजने दे या आपको जिस भी भगवान की प्रतिमा प्यारी लगती हो उसका स्मरण करें और हर रोज ऐसे ध्यान से थोड़े ही दिन में आप पाओगे कि मैं खो गया और परमात्मा ही बच रहा है।
अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ है और ज्ञान से ध्यान श्रेष्ठ है ध्यान से सब कर्मों के फल का त्याग श्रेष्ठ है। कृष्ण कहते कर्मों के फल का त्याग कर देना क्योंकि त्याग से तत्काल परम शांति हो जाती है। अगर आपको अशांति चाहिए तो सब अपने सिर पर रखना, दूसरों का भी उतार कर अपने सिर पर रख लेना, सारी दुनिया की भी तकलीफ अपने सिर पर रख लेना अशांति आपकी अच्छे से बढ़ जाएगी, लगभग लोगों ने अपनी अशांति ऐसे ही बढ़ा रखी है। और अगर आपको शांति चाहिए तो सब परमात्मा पर छोड़ देना।
कृष्ण कहते हैं मुश्किल होगा शायद यह भी करना कि तू कर्म मुझमें छोड़ सके, क्योंकि इसमें खुद को छोड़ना पड़ेगा और बहुत कठिन है खुद को छोड़ पाना। तब कहते हैं कि तू एक काम कर कर्म ना छोड़ सके तो कम से कम कर्म का फल ही छोड़ दे, क्योंकि कर्म तो तुझे लगता है कि मैं ही कर रहा हूँ, लेकिन फल तो तू छोड़ ही सकता है क्योंकि फल तो पक्का नहीं है कि तू ही करता है। हे अर्जुन कर्म तू करता है फल अपने आप मिलता है और पक्का नहीं कहा जाता कि तू फल का नियता है, इसलिए कम से कम फल की इच्छा छोड़ दे। इतना ही कर ले कर्म तू कर फल मुझ पर छोड़ दे यह सोच फल परमात्मा ही देने वाला है।
आगे कृष्ण कहते हैं बिना जाने अभ्यास में मत पड़ना कहीं नुकसान ना उठा लो बिना जाने अभ्यास से तो ज्ञान श्रेष्ठ है। ज्ञान का मतलब है जिन्होंने जाना है उनका कहा हुआ ज्ञान, उनका लिखा हुआ ज्ञान, उसको ही स्वीकार कर लेना ही ठीक है और ज्ञान से मुझ परमेश्वर का ध्यान श्रेष्ठ है, क्योंकि शास्त्रों में कितना भी पता चल जाए वह आपका अनुभव तो नहीं, वह तो उनका अनुभव है जिनको आत्म बोध हुआ। इसलिए कृष्ण कहते हैं जितना समय अभ्यास में लगाते हो, उतना समय आप शास्त्र में लगाएं और जितना समय आप शास्त्र में लगाते उससे तो अच्छा है वह समय आप प्रभु के ध्यान में लगाएँ, सबसे बेहतर है सब किताबें बंद करके प्रभु का स्मरण करें।
ध्यान कैसे करना है इसको थोड़ा समझ लें ध्यान करने के लिए आपको कुछ भी नहीं करना। कुछ भी ना करें सिर्फ लेट जाएँ या बैठ जाएँ अपने को पूर्ण रिलैक्स छोड़ दें श्वास भी ना लें अपने आप चलने दें, सिर्फ मुर्दे की तरह पड़े रहें पाँच या दस मिनट में जब मन शांत हो जाए, उस क्षण में एक ही भावना करें जो भी नाम आपको प्यारा लगता हो जैसे ओम-ओम या राम-राम उसको अपने भीतर गूँजने दे या आपको जिस भी भगवान की प्रतिमा प्यारी लगती हो उसका स्मरण करें और हर रोज ऐसे ध्यान से थोड़े ही दिन में आप पाओगे कि मैं खो गया और परमात्मा ही बच रहा है।
अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ है और ज्ञान से ध्यान श्रेष्ठ है ध्यान से सब कर्मों के फल का त्याग श्रेष्ठ है। कृष्ण कहते कर्मों के फल का त्याग कर देना क्योंकि त्याग से तत्काल परम शांति हो जाती है। अगर आपको अशांति चाहिए तो सब अपने सिर पर रखना, दूसरों का भी उतार कर अपने सिर पर रख लेना, सारी दुनिया की भी तकलीफ अपने सिर पर रख लेना अशांति आपकी अच्छे से बढ़ जाएगी, लगभग लोगों ने अपनी अशांति ऐसे ही बढ़ा रखी है। और अगर आपको शांति चाहिए तो सब परमात्मा पर छोड़ देना।