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इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि।।
अर्थ हे गुडाकेश ! मेरे इस शरीर के एक स्थान में चर-अचर सहित सम्पूर्ण जगत को अभी देख। इसके सिवाय तू और भी जो देखना चाहता है वह भी देख ले। व्याख्यागीता अध्याय 11 का श्लोक 7 गुडाकेश अर्थात् नींद को जीतने वाले अर्जुन! मेरे इस शरीर के एक स्थान पर सम्पूर्ण संसार (चर-अचर) जगत को अभी देख ले, इसके सिवा और कोई भी शंका है तो जो कुछ भी देखना चाहता है वह भी देख ले, भगवान के कहने का तात्पर्य है चर-अचर सम्पूर्ण जगत को देख यानि तू जहाँ दृष्टि डालेगा वहाँ तेरे को अनन्त ब्रह्माण्ड दिखेगा। तू मनुष्य, देवता, राक्षस, यज्ञ, भूत, पशु, पक्षी और पेड़, पौधे, घास, लता तथा पहाड़, रेत, नदियाँ, नाले, सागर सम्पूर्ण जगत को तू मेरे अंश मात्र जगह में स्थिर देख। जैसे अर्जुन ने कहा अगर आपकी नजरों में मैं पात्र हूँ तो आप अपना मुझे विश्वरूप दिखाएं, तब भगवान अर्जुन को बोल रहे हैं कि देख सिर्फ कह रहे हैं कि मैं अभी जो रूप दिखाऊंगा उसमें तू यह सब देख, परन्तु तू अपनी चर्मचक्षु (आँख) से मुझे नहीं देख सकता, इसलिए मैं तुझे दिव्य चक्षु देता हूँ, जिससे तू मेरी ईश्वरीय योग शक्ति को देख सकेगा। मनुष्य अपने चर्मचक्षु से प्रकृति के मनुष्य, पशु, पक्षी आदिरूपों को उनके भेदों से देख सकता है। परन्तु वे मन, बुद्धि, इन्द्रियों से इस परम रूप को नहीं देख सकता। इसलिए भगवान श्री कृष्ण, अर्जुन को दिव्य (आलोकिक) आँख देते है। जिसके द्वारा अर्जुन विश्वरूप के दर्शन कर पाते हैं।
दिव्य चक्षु प्राप्त करने के बाद भगवान का कैसा रूप देखा अर्जुन ने, यह बात संजय धृतराष्ट्र से आगे के श्लोक में कहते हैं|
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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