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पितासि लोकस्य चराचरस्य त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान्।
न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्यो लोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव।।
अर्थ आप ही इस चर अचर संसार के पिता हैं। आप ही पूजनीय हैं और आप ही गुरूओं के महान गुरू हैं। हे अनन्त प्रभावशाली भगवन इस त्रिलोकी में आपके समान दूसरा कोई नहीं है फिर आपसे अधिक तो हो ही कैसे सकता है। व्याख्यागीता अध्याय 11 का श्लोक 43 अनन्त ब्रह्म में मनुष्य, पशु, पक्षी, आदि जितने चर प्राणी हैं और जितने अचर जैसे पेड़, पौधे, लता, घास आदि उन सब चराचर को उत्पन्न करने वाले और उनका पालन पोषण करने वाले पिता भी आप हैं तथा उनको शिक्षा देने वाले महान गुरू भी आप ही हैं।
इस त्रिलोकी में आपके समान दूसरा कोई नहीं, कोई बराबर ही नहीं तो बड़ा होने का तो सवाल ही नहीं होता, सम्पूर्ण ब्रह्म में जब कुछ भी नहीं था तब वह एक परमेश्वर ही था, और वह अब भी है और विनाश होने के बाद भी रहेगा। सम्पूर्ण संसार जिसने बनाया उसके समान कोई कैसे हो सकता है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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