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तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्।
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्।।

द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथाऽन्यानपि योधवीरान्।
मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान्।
अर्थ इसलिए तुम युद्ध के लिए खड़े हो जाओ और यश को प्राप्त करो तथा युद्ध को जीतकर धन-धान्य से सम्पन्न राज्य को भोगो। ये सभी मेरे द्वारा पहले ही मारे हुए हैं, हे सव्यसचिन ! तुम इनको मारने में निमित मात्र बन जाओ। द्रोण और भीष्म तथा जयद्रथ और कर्ण तथा अन्य सभी मेरे द्वारा मारे हुए शूरवीरों को तुम मारो। भय मत करो, युद्ध करो। युद्ध में तुम वैरियों को जीतोगे। व्याख्यागीता अध्याय 11 का श्लोक 33-34 तुम्हारे मारे बिना भी यह योद्धा लोग नहीं रहेंगे फिर भी समय के चक्कर से मरना सबको है। इसलिए तुम युद्ध के लिए खड़े हो जाओ और यश को प्राप्त करो। शत्रु को जीतकर धन-धान्य से सम्पन्न राज्य को भोगो। यह सभी राजा लोग मेरे द्वारा पहले ही मारे हुए हैं तुम निमित मात्र बन जाओ। अर्थात् भगवान कह रहे हैं कि हे अर्जुन यहाँ जितने भी योद्धा आए हुए हैं इन सबकी काल के हिसाब से आयु समाप्त हो चुकी है। जब कोई बच्चा जन्म लेता है, उसके जन्म की पहली साँस से ही आखिरी साँस का सफर शुरू हो जाता है। अर्थात् पल-पल करते हुए मौत का समय आ जाता है। मौत कब आएगी यह काल की गणना होती है। हर जन्म के कर्मों के हिसाब से मौत का समय कब आयेगा यह विधाता के सिवा कोई नहीं जानता कोई जन्म से पहले मर जाते हैं, कोई जन्म के वक्त, कोई महीने में, कोई साल में तो कोई कुछ साल में, काल सबको चट कर जाता है। जन्म के साथ ही मृत्यु भी निर्धारित हो जाती है। जैसे इन राजाओं की आयु समाप्त होने का समय आ गया। उदाहरण जैसे कोई व्यक्ति कहता है मैंने उस व्यक्ति को बहुत रोकना चाहा फिर भी वह अनसुना करके निकल गया और आगे जाकर दुर्घटना में मर गया। अगर मेरे कहने से रूक जाता तो बच जाता। उस व्यक्ति का अंत समय आ चुका था। दुर्घटना तो एक बहाना था अब जिसके साथ दुर्घटना हुआ वह सोचता है कि मैं दो मिनट देरी से चलता तो मेरे से व्यक्ति न मरता। उसकी मृत्यु निश्चित थी सामने वाला तो निमित मात्र था। अगर सामने वाला यह सोचे कि इसको मैंने मार दिया तो उस व्यक्ति में कर्त्ता भाव आने से उस करनी का फल भी उसको भोगना पड़ेगा। अगर वह व्यक्ति उस दुर्घटना से ना मरता तो हार्ट अटैक से मर जाता। लोग छींक लेते है और छींक के साथ ही सब और अँधेरा हो जाता है यानि प्राण पखेरू उड़ जाते हैं। पृथ्वी पर इतने भुकंप, बाढ़, महामारी, युद्ध हो रहे हैं यह सब परम की बनाई हुई काल गणना है। यानि लोग सोचते हैं कि हम कर रहे हैं। लेकिन ब्रह्म अपने आप इसको कायम कर लेता है। लोग तो यूँ ही परमात्मा की गणना के बीच में उछल कूद कर रहे हैं। करने वाला ईश्वर है। परम विश्वरूप भगवान कहते हैं कि काल की गणना के हिसाब से जन्म के साथ ही मैंने इनको मार दिया था। अर्थात्  पहली साँस से ही मृत्यु का आखिरी क्षण भी गणना में हो गया था। यानि उसी वक्त मार दिया था जीवन तो एक प्रोसेस था मृत्यु तक पहुँचने का, यह मेरे द्वारा पहले से मारे हुए हैं। तू तो बस निमित मात्र बन, निमित का अर्थ यह भी नहीं कि तुम उत्साह से युद्ध ना करो युद्ध तो पूरे जोश और दोनों हाथों से बाण पर बाण चलाकर करो। लेकिन यश की प्राप्ति होने पर यह नहीं कि तुम फूल जाओ कि वाह-वाह मैंने विजय प्राप्त कर ली, ऐसे समझने से तुम्हारे भीतर कर्त्तापन का अहंकार आ जाएगा। कर्त्ता को कर्मों का फल भोगना पड़ता है। तुम तो ऐसा समझो कि यह योद्धा लोग तो परमात्मा के पहले ही मारे हुए हैं, मैं तो निमित मात्र हूँ। मारने वाला तो ईश्वर है निमित मात्र युद्ध करने से तुम आसक्तियों से बंधोगे भी नहीं और राज्य का भोग भी करोगे। क्योंकि अर्जुन का स्वभाव क्षत्रियों का है और प्रजा की रक्षा के लिए युद्ध करना ही क्षत्रियों का धर्म है। भगवान श्री कृष्ण ने दुर्योधन को कहा आधा राज्य नहीं देते तो कोई बात नहीं पाँच गाँव ही दे दो तब दुर्योधन ने कहा बिना युद्ध करे मैं पाण्डवों को सुई की नोक रखने जितनी जगह भी नहीं दूँगा। पापियों का अधर्म बहुत बढ़ गया था, अगर कृष्ण वह युद्ध नहीं करवाते तो हमेशा हमेशा के लिए एक संदेश जाता कि ताकत वालो कमजोर को लूट लो, इस भय को दूर करने के लिए, अपने हक के लिए लड़ने का एक संदेश था मनुष्यों को, बाकी युद्ध तो एक बहाना था। मौत का समय सब राजाओं के सर पर खड़ा था। इसलिए भगवान कहते हैं अपने कर्त्तापन का त्याग करके मेरे लिए तू युद्ध कर इस भाव से युद्ध करने से तू कर्मों से मुक्त हो जाएगा और पृथ्वी के राज्य का सुख भी भोगेगा बस निमित मात्र बन जा। यह सब शूरवीर मेरे द्वारा पहले ही मारे हुए हैं, मेरे द्वारा मारे हुए शूरवीरों को तुम मार दो अर्थात् उन सबकी आयु समाप्त हो चुकी है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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