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श्री भगवानुवाच
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।।
अर्थ श्री भगवान बोले - मैं सम्पूर्ण लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ काल हूँ और इस समय में इन सब लोगों का संहार करने आया हूँ। तुम्हारे सामने जो योद्धा लोग खड़े हैं, वे सब तुम्हारे युद्ध किए बिना भी नहीं रहेंगे। व्याख्यागीता अध्याय 11 का श्लोक 32  पिछले श्लोक में अर्जुन ने पूछा था कि उग्र रूप वाले आप कौन हो उसके उत्तर में भगवान कहते हैं कि मैं सम्पूर्ण लोकों का नाश करने वाला बड़े भयंकर रूप से बढ़ा हुआ अक्षयकाल हूँ, इस समय दोनों सेनाओं का संहार करने आया हूँ। परम विराट विश्वरूप कहते हैं कि जो तुम्हारे सामने यह योद्धा लोग खड़े हैं, वे सब तुम्हारे युद्ध करने के बिना भी नहीं रहेंगे। अर्थात् आज से सौ साल पहले जो लोग थे उनमें से आज एक भी नहीं है। मृत्यु सत्य है अटल है निश्चित है आज जितने प्राणी आपको दिख रहे हैं, इन सबका यह शरीर आज से सौ वर्ष बाद नहीं रहेगा। काल (समय) सबको चट कर जाता है। जो बित गया वह भूत है। जो चल रहा है यह वर्तमान है। आने वाला समय भविष्य है। इन तीनों काल को जब एक साथ देखोगे यानि जो बढ़ा हुआ समय है यानि आने वाला समय है उसको भी समेट कर देखोगे तो सब लोगों को एक साथ मृत्यु के मुँह में जाता पाओगे। परम का समय रूका हुआ है। उसको अक्षय काल कहते है यानि काल का भी काल महाकाल यानि काल अतीत को ही अक्षय काल कहा है परम अकाल मूर्त है। ब्रह्म काल मूर्त है।
भगवान कह रहे हैं कि तुमने मेरे विश्वरूप में यह तो देख ही लिया कि तेरे युद्ध ना करने पर भी सब योद्धा लोग नहीं बचेंगे फिर भी मारे जाएँगे यानि आप बात को समझें कि जो लोग युद्ध में बच गए थे वह भी तो सब मनुष्यों के शरीर कुछ समय बाद खत्म हो गए थे। यानि भगवान कह रहे हैं कि तू नहीं मारेगा इन सबको तो भी यह नहीं बचेंगे। फिर भी समय के चक्र से सबको मरना ही पड़ेगा।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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