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आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद।
विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम्।।
अर्थ मुझे यह बताइए कि उग्र रूप वाले आप कौन हैं, हे देवताओं में श्रेष्ठ ! आपको नमस्कार आप प्रसन्न होइए, अनादि रूप आपको मैं तत्त्व से जानना चाहता हूँ, क्योंकि मैं आपकी प्रवृति को भली भांति नहीं जानता। व्याख्यागीता अध्याय 11 का श्लोक 31  परम विश्वरूप भगवान को देखकर अर्जुन घबरा गए, कारण कि उनके उग्र रूप मुख में सम्पूर्ण प्राणी दोनों पक्षों के योद्धा जाते देख कर घबरा गए।
मुझे यह बताएं कि उग्र रूप वाले आप कौन हैं अर्थात् अर्जुन इतने घबरा जाते हैं कि अपने ही सखा श्री कृष्ण से पूछते हैं कि आप कौन हो, आप देव रूप से भी दिख रहे हैं और उग्र रूप से भी दिख रहे हैं। तो ऐसे रूपों को धारण करने वाले आप कौन हो। हे देवताओं में श्रेष्ठ आपको नमस्कार, अर्जुन उग्र रूप देखकर भय के कारण प्रार्थना करते हैं कि आप प्रसन्न हो जाइए। मैं आपको विज्ञान (तत्व) से जानना चाहता हूँ। क्योंकि मैं आपके ज्ञान विज्ञान = तत्वज्ञान को नहीं जानता। आप कौन हैं मैं जानना चाहता हूँ। अर्जुन के इस प्रार्थना पूर्वक प्रश्न का भगवान आगे के श्लोकों में उत्तर देते हैं।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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