एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर।
द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम।।
मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो।
योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयाऽत्मानमव्ययम्।।
द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम।।
मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो।
योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयाऽत्मानमव्ययम्।।
अर्थ हे पुरूषोत्तम आप अपने को जैसा कहते हैं, यह ऐसा ही है। हे परमेश्वर आपके ईश्वर रूप को मैं देखना चाहता हूँ।
हे प्रभु मेरे द्वारा आपका वह ऐश्वर्य रूप देखा जा सकता है। ऐसा अगर आप मानते हैं तो हे योगेश्वर आप अपने अविनाशी रूप को मुझे दिखा दीजिए। व्याख्या गीता अध्याय 11 का श्लोक 3-4
हे पुरूषोत्तम अर्थात् मेरी दृष्टि में इस संसार में आपके समान कोई भी पुरूष उत्तम नहीं, आप ही श्रेष्ठ हो, अर्जुन कहते हैं आप अपने आपको जैसा कहते हैं, यह सम्पूर्ण संसार वास्तव में ऐसा ही है, हे परमेश्वर (परम$ईश्वर) आपके ईश्वर रूप का मैं दर्शन करना चाहता हूँ।
हे प्रभु ( प्रभु इस भु मण्डल से परे) मेरे द्वारा भगवान रूप देखा जा सकता है। अगर आप मेरे को ऐसा पात्र मानते हो तो हे योगेश्वर आप आत्मा के उस अविनाशी रूप को मुझे दिखाएं अर्थात् उत्पत्ति स्थिति उसी में लीन हो जाती है आपके उस अविनाशी स्वरूप के दर्शन करवाएँ।
हे प्रभु ( प्रभु इस भु मण्डल से परे) मेरे द्वारा भगवान रूप देखा जा सकता है। अगर आप मेरे को ऐसा पात्र मानते हो तो हे योगेश्वर आप आत्मा के उस अविनाशी रूप को मुझे दिखाएं अर्थात् उत्पत्ति स्थिति उसी में लीन हो जाती है आपके उस अविनाशी स्वरूप के दर्शन करवाएँ।