यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखाः द्रवन्ति।
तथा तवामी नरलोकवीरा विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति।।
यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतङ्गा विशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः।
तथैव नाशाय विशन्ति लोका स्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः।।
तथा तवामी नरलोकवीरा विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति।।
यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतङ्गा विशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः।
तथैव नाशाय विशन्ति लोका स्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः।।
अर्थ जैसे नदियों के बहुत से जल के प्रवाह स्वाभाविक ही समुन्द्र के सम्मुख दौड़ते हैं, ऐसे ही वे संसार के महान शूरवीर आपके सब तरफ से मुखों में प्रवेश कर रहे हैं।
जैसे पतंगे मोहवश अपना नाश करने के लिए बड़े वेग से दौड़ते हुए प्रज्वलित अग्नि में प्रविष्ट होते हैं, ऐसे ही ये सब लोग भी मोहवश अपना नाश करने के लिए बड़े वेग से दौड़ते हुए आपके मुखों में प्रविष्ट हो रहे हैं। व्याख्यागीता अध्याय 11 का श्लोक 28-29
समुन्द्र का जल बादलों के द्वारा वर्षा रूप में पृथ्वी पर बरस कर झरने, नाले, नदियों का रूप धारण करता है, उन नाना नदियों के जितने वेग हैं, प्रवाह हैं वे सभी स्वाभाविक ही समुन्द्र की तरफ दौड़ते हैं, कारण कि जल का स्थान सागर ही है वे सभी जल सागर में जाकर अपने नाम यानि गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, गोमती, झेलम आदि नामों और रूप को छोड़कर सागर ही हो जाते हैं। फिर वह नदियों के जल समुन्द्र के सिवाय अपना कोई अलग से अस्तित्व नहीं रखते, सत्य तो यह है कि उनका अस्तित्व पहले भी नहीं था। केवल नदियों के रूप में होने के कारण अलग दिखते थे।
नदियों की तरह ही मनुष्य सुख की अभिलाषा लेकर मृत्यु की तरफ ही दौड़ते हैं। इस बात को अच्छे से समझाने के लिए भगवान ने एक और उदाहरण दिया है कि जैसे पतंगे मोहवश अपना नाश करने के लिए बड़ी रफ्तार से दौड़ते हुए प्रज्वलित अग्नि में प्रविष्ट होते हैं अर्थात् जैसे पेड़ की खोल में या हरी घास में रहने वाले पतँगे बारिश के मौसम में अँधेरी रात्रि में कहीं पर जलती अग्नि को देखते ही मुग्ध होकर उसकी तरफ बड़ी तेजी से दौड़ते हैं। उनमें से कुछ तो जलती अग्नि में स्वाहा हो जाते है और कुछ पंखों के जलने से तड़फते रहते हैं। फिर भी उनकी लालसा अग्नि की तरफ ही रहती है।
ऐसे ही संसार के सब लोग भोग भोगने और धन इक्ट्ठा करने के मोहवश यानि अपना नाश करने के लिए, पतंगे की तरह तेजी से काल चक्र रूप आपके मुख में जा रहे हैं। अर्थात्म नुष्य मोहवश अपने खुद के पतन की तरफ जा रहे हैं। यानि चौरासी लाख योनियों की तरफ और नरकों की तरफ अति वेग से दौड़ते हुए जा रहे हैं।
नदियों की तरह ही मनुष्य सुख की अभिलाषा लेकर मृत्यु की तरफ ही दौड़ते हैं। इस बात को अच्छे से समझाने के लिए भगवान ने एक और उदाहरण दिया है कि जैसे पतंगे मोहवश अपना नाश करने के लिए बड़ी रफ्तार से दौड़ते हुए प्रज्वलित अग्नि में प्रविष्ट होते हैं अर्थात् जैसे पेड़ की खोल में या हरी घास में रहने वाले पतँगे बारिश के मौसम में अँधेरी रात्रि में कहीं पर जलती अग्नि को देखते ही मुग्ध होकर उसकी तरफ बड़ी तेजी से दौड़ते हैं। उनमें से कुछ तो जलती अग्नि में स्वाहा हो जाते है और कुछ पंखों के जलने से तड़फते रहते हैं। फिर भी उनकी लालसा अग्नि की तरफ ही रहती है।
ऐसे ही संसार के सब लोग भोग भोगने और धन इक्ट्ठा करने के मोहवश यानि अपना नाश करने के लिए, पतंगे की तरह तेजी से काल चक्र रूप आपके मुख में जा रहे हैं। अर्थात्म नुष्य मोहवश अपने खुद के पतन की तरफ जा रहे हैं। यानि चौरासी लाख योनियों की तरफ और नरकों की तरफ अति वेग से दौड़ते हुए जा रहे हैं।