दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानि दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि।
दिशो न जाने न लभे च शर्म प्रसीद देवेश जगन्निवास।।
दिशो न जाने न लभे च शर्म प्रसीद देवेश जगन्निवास।।
अर्थ आपके प्रलयकाल की अग्नि के समान प्रज्वलित और दाढ़ों के कारण विकराल भयानक मुख को देखकर मुझे ना तो दिशाओं का ज्ञान हो रहा है, न शांति मिल रही है। इसलिए हे देवेश ! हे जगनिवास ! आप प्रसन्न होइए। व्याख्यागीता अध्याय 11 का श्लोक 25
अर्जुन कहते हैं जब प्रलय का समय होता है तब अग्नि ही अग्नि होती है। उस अग्नि के प्रकाश के समान आपका प्रकाश देखकर, दाढ़ों के कारण भयानक मुखों को देखकर मुझे ना तो कोई दिशाओं का ज्ञान (पता) हो रहा है और न शांति मिल रही है इसलिए हे जगनिवास आप खुश होइए।
भगवान का विश्व रूप देखकर अर्जुन को वहम हो गया कि परम विराट रूप प्रभु अप्रसन्न हैं इसलिए वह प्रसन्न होने की प्रार्थना करते हैं।
अब आगे अर्जुन मुख्य योद्धाओं का परम विराट रूप में प्रवेश होने का वर्णन करते हैं।
भगवान का विश्व रूप देखकर अर्जुन को वहम हो गया कि परम विराट रूप प्रभु अप्रसन्न हैं इसलिए वह प्रसन्न होने की प्रार्थना करते हैं।
अब आगे अर्जुन मुख्य योद्धाओं का परम विराट रूप में प्रवेश होने का वर्णन करते हैं।