नभःस्पृशं दीप्तमनेकवर्णं व्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम्।
दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो।।
दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो।।
अर्थ क्योंकि हे विष्णो आपके दैदीप्यमान अनेक वर्ण हैं। आप आकाश को स्पर्श कर रहे हैं। आपका मुख फैला हुआ है। प्रकाशमान विशाल नेत्रों से युक्त आपको देखकर मैं भयभीत मन में धैर्य और शांति को प्राप्त नहीं हो रहा हूँ। व्याख्या गीता अध्याय 11 का श्लोक 24
हे विष्णो - अर्जुन के कहने का भाव है कि आप साक्षात् विष्णु है। आपने पृथ्वी पर धर्म को अच्छी प्रकार स्थापित करने के लिए कृष्ण रूप में अपने रूप को रच कर जन्म लिया है।
अब बहुत से व्यक्ति पूछते हैं कि कृष्ण कौन थे आपके हिसाब से मेरा जवाब होता है इस सम्पूर्ण ब्रह्म को रचने वाले परमात्मा कृष्ण ही है। तो लोग कहते हैं, कृष्ण तो एक राजा थे, उनका तो जन्म हुआ है और परमात्मा तो अजन्मा अविनाशी है। कृष्ण से पहले भी करोड़ों वर्ष से ब्रह्म चल रहा है। फिर कृष्ण कैसे सृष्टि रचयिता हुए।
इस बात को अच्छे से समझ लें, कि क्या थे भगवान श्री कृष्ण हमारे शरीर व चक्षु-प्रकृति के तत्वों से बने हुए है। हमारी आँखें उन शक्तियों को देख नहीं पाती है जैसे इस अध्याय में भगवान अर्जुन को विश्वरूप दिखा रहे हैं उनको चक्षु दिव्य दिए हैं तब वह सब कुछ देख पा रहे हैं। प्राणी के चर्म चक्षु वही देख पाती है। जिनके लिए मानव बना है यानि संसार ही देख सकता है। प्राणी इस डाइमेंशन पर और भी बहुत कुछ है जिनको मानव देख नहीं सकता। अगर परमात्मा को देवताओं को कुछ देना हो सिखाना हो तो परमात्मा देवता रूप में ही जाकर समझाएँगे। पितरों को पितरों के रूप में ही जाकर कुछ ज्ञान देंगे प्रभु। ऐसे ही पानी में रहने वाले जीव जैसे मछली, मगर आदि उनको उनके रूप में और जंगलों में रहने वाले पशु-पक्षियों को उनके रूप में, ऐसे ही जब परमात्मा को सबसे श्रेष्ठ मानव को ज्ञान देना हो और धर्म की अच्छी प्रकार स्थापना करनी होती है। तब निराकार परम प्रभु जो साकार रूप में विष्णु शक्ति के रूप में लोगों का पालन पोषण करते हैं। वह कभी राम बनके आते हैं कभी कोई सन्त, वह धर्मों की अच्छी प्रकार स्थापना करके जाते है। मानव के सामने मानव ही बनके जन्म लेते हैं। भगवान को जो बदलाव या सच्चा ज्ञान देना हो वह मानव को मानव रूप में जन्म लेकर देते हैं। ऐसे ही श्री कृष्ण, विष्णु शक्ति के अवतार माने जाते हैं, विष्णु शक्ति ही श्री कृष्ण रूप में जन्म लेकर प्रकट हुए हैं।
मेरे परम भाव को न जानने वाले मूढलोग, सम्पूर्ण भूतों के महान ईश्वर मुझ परम को शरीर धारण करने से तुच्छ समझते हैं। अपनी योगमाया से संसार के उद्धार के लिए भगवान मनुष्य रूप में विचरते हैं। भगवान कहते है कि जब मैं मनुष्य रूप में विचरता हूँ। तब संसार के अज्ञानी मुझको जन्मने मरने वाला मानकर साधारण मनुष्य मानते हैं। वह अज्ञानी लोग कृष्ण के शरीर को ही कृष्ण मानते हैं। तब उनको लगता है कि कृष्ण तो एक राजा थे, सृष्टि रचयिता तो निर्गुण निराकार है तो कृष्ण कैसे परम हुए। मुर्ख लोगों को पता नहीं जब परम को लीला करनी होती है तब वह कभी राम बनकर कभी श्याम बनकर तो कभी सन्त पुरूष बनके बार-बार आते रहते हैं। जिनको यह बात समझ नहीं आती वे मनुष्य व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म, व्यर्थ ज्ञान के अज्ञानी राक्षसी, असुरी प्रकृति को धारण किए रहते हैं। परन्तु देवी प्रकृति के आश्रित योगी सनातन परमात्मा के साथ एकीभाव रहते हुए परम को ही प्राप्त होते हैं।
अर्जुन कहते हैं हे विष्णु- आपके अनेक वर्ण हैं। आप आकाश को स्पर्श कर रहे हो, आपका मुख फैला हुआ व बहुत बड़ा है। आपके नेत्र विशाल है आपको देखकर मेरा मन भयभीत हो रहा है। आपके विश्वरूप को देखकर मैं धैर्य और शांति को प्राप्त नहीं हो रहा हूँ। अर्जुन की जहाँ तक दृष्टि जाती है वहाँ तक उनको विराट रूप ही नजर आ रहा है। परमात्मा सबकी परम अवधि व परम गति है।
अब बहुत से व्यक्ति पूछते हैं कि कृष्ण कौन थे आपके हिसाब से मेरा जवाब होता है इस सम्पूर्ण ब्रह्म को रचने वाले परमात्मा कृष्ण ही है। तो लोग कहते हैं, कृष्ण तो एक राजा थे, उनका तो जन्म हुआ है और परमात्मा तो अजन्मा अविनाशी है। कृष्ण से पहले भी करोड़ों वर्ष से ब्रह्म चल रहा है। फिर कृष्ण कैसे सृष्टि रचयिता हुए।
इस बात को अच्छे से समझ लें, कि क्या थे भगवान श्री कृष्ण हमारे शरीर व चक्षु-प्रकृति के तत्वों से बने हुए है। हमारी आँखें उन शक्तियों को देख नहीं पाती है जैसे इस अध्याय में भगवान अर्जुन को विश्वरूप दिखा रहे हैं उनको चक्षु दिव्य दिए हैं तब वह सब कुछ देख पा रहे हैं। प्राणी के चर्म चक्षु वही देख पाती है। जिनके लिए मानव बना है यानि संसार ही देख सकता है। प्राणी इस डाइमेंशन पर और भी बहुत कुछ है जिनको मानव देख नहीं सकता। अगर परमात्मा को देवताओं को कुछ देना हो सिखाना हो तो परमात्मा देवता रूप में ही जाकर समझाएँगे। पितरों को पितरों के रूप में ही जाकर कुछ ज्ञान देंगे प्रभु। ऐसे ही पानी में रहने वाले जीव जैसे मछली, मगर आदि उनको उनके रूप में और जंगलों में रहने वाले पशु-पक्षियों को उनके रूप में, ऐसे ही जब परमात्मा को सबसे श्रेष्ठ मानव को ज्ञान देना हो और धर्म की अच्छी प्रकार स्थापना करनी होती है। तब निराकार परम प्रभु जो साकार रूप में विष्णु शक्ति के रूप में लोगों का पालन पोषण करते हैं। वह कभी राम बनके आते हैं कभी कोई सन्त, वह धर्मों की अच्छी प्रकार स्थापना करके जाते है। मानव के सामने मानव ही बनके जन्म लेते हैं। भगवान को जो बदलाव या सच्चा ज्ञान देना हो वह मानव को मानव रूप में जन्म लेकर देते हैं। ऐसे ही श्री कृष्ण, विष्णु शक्ति के अवतार माने जाते हैं, विष्णु शक्ति ही श्री कृष्ण रूप में जन्म लेकर प्रकट हुए हैं।
मेरे परम भाव को न जानने वाले मूढलोग, सम्पूर्ण भूतों के महान ईश्वर मुझ परम को शरीर धारण करने से तुच्छ समझते हैं। अपनी योगमाया से संसार के उद्धार के लिए भगवान मनुष्य रूप में विचरते हैं। भगवान कहते है कि जब मैं मनुष्य रूप में विचरता हूँ। तब संसार के अज्ञानी मुझको जन्मने मरने वाला मानकर साधारण मनुष्य मानते हैं। वह अज्ञानी लोग कृष्ण के शरीर को ही कृष्ण मानते हैं। तब उनको लगता है कि कृष्ण तो एक राजा थे, सृष्टि रचयिता तो निर्गुण निराकार है तो कृष्ण कैसे परम हुए। मुर्ख लोगों को पता नहीं जब परम को लीला करनी होती है तब वह कभी राम बनकर कभी श्याम बनकर तो कभी सन्त पुरूष बनके बार-बार आते रहते हैं। जिनको यह बात समझ नहीं आती वे मनुष्य व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म, व्यर्थ ज्ञान के अज्ञानी राक्षसी, असुरी प्रकृति को धारण किए रहते हैं। परन्तु देवी प्रकृति के आश्रित योगी सनातन परमात्मा के साथ एकीभाव रहते हुए परम को ही प्राप्त होते हैं।
अर्जुन कहते हैं हे विष्णु- आपके अनेक वर्ण हैं। आप आकाश को स्पर्श कर रहे हो, आपका मुख फैला हुआ व बहुत बड़ा है। आपके नेत्र विशाल है आपको देखकर मेरा मन भयभीत हो रहा है। आपके विश्वरूप को देखकर मैं धैर्य और शांति को प्राप्त नहीं हो रहा हूँ। अर्जुन की जहाँ तक दृष्टि जाती है वहाँ तक उनको विराट रूप ही नजर आ रहा है। परमात्मा सबकी परम अवधि व परम गति है।