भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया।
त्वत्तः कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम्।।
त्वत्तः कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम्।।
अर्थ क्योंकि हे कमल नयन ! सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति तथा विनाश मैंने विस्तारपूर्वक आप से ही सुने हैं और आपका अविनाशी महात्मय भी सुना है।
व्याख्यागीता अध्याय 11 का श्लोक 2
मोह कैसे नष्ट हुआ इसको आगे विस्तार से बताते हैं, सम्पूर्ण प्राणियों की, सृष्टि की, उत्पत्ति तथा विनाश मैंने विस्तार पूर्वक आपसे ही सुनें, अर्थात् अर्जुन ने उस समय से पहले कभी निर्गुण निराकार का ज्ञान नहीं सुना था, अर्जुन ने उससे पहले वेदों के ज्ञान स्वर्ग, सुख देने वाला ज्ञान सुना था, यह मुक्ति का ज्ञान मैंने आपसे ही विस्तार पूर्वक सुना है तथा हे भगवान मैंने आपकी अविनाशी (कभी नाश ना होने वाली) महिमा भी सुनी है।
भगवान ने अभी तक जितनी महिमा बताई, वे सब की सब परम का गोपनीय ज्ञान है, मोह के रहते मोह का ज्ञान नहीं होता, मोह चले जाने पर मोह का ज्ञान होता है और ज्ञान होने पर मोह रहता नहीं सिर्फ परमात्मा ही परमात्मा रहता है।
भगवान ने अभी तक जितनी महिमा बताई, वे सब की सब परम का गोपनीय ज्ञान है, मोह के रहते मोह का ज्ञान नहीं होता, मोह चले जाने पर मोह का ज्ञान होता है और ज्ञान होने पर मोह रहता नहीं सिर्फ परमात्मा ही परमात्मा रहता है।