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त्वमव्ययः शाश्वतधर्मगोप्ता
सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे।।
अर्थ आप जानने योग्य परम अक्षर हैं, आप ही इस सम्पूर्ण विश्व के परम आश्रय हैं। आप ही शाश्वतधर्म के रक्षक हैं और आप ही अविनाशी सनातन पुरूष हैं ऐसा मैं मानता हूँ। व्याख्यागीता अध्याय 11 का श्लोक 18 तत्वज्ञानी महापुरूषों द्वारा जानने योग्य जो परम अक्षर ब्रह्म है जिसको निर्गुण-निराकार कहते हैं, वह आप ही है। सम्पूर्ण विश्व (ब्रह्म) आप के ही आश्रय है। परम विराट में ही ब्रह्म है जैसे सागर में लहर।
आप ही सनातन धर्म के रक्षक हैं अर्थात् जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है। तब आप ही सगुण रूप में अवतार लेकर अधर्म का नाश करके सनातन धर्म की रक्षा करते हैं।
आप ही अव्ययः सनातनः पुरूषः है अर्थात् अविनाशी, सनातन, अनादि सदा रहने वाले श्रेष्ठ परमात्मा आप ही है यह मेरा मत है।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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