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अर्जुन उवाच
पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्घान्।
ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थ मृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान्।।
अर्थ अर्जुन बोले - हे देव मैंने आपके शरीर में सम्पूर्ण देवताओं को तथा प्राणियों के समुदाय को कमल आसन पर बैठे हुए ब्रह्मा जी को, शंकर जी को, सम्पूर्ण ऋषियों को और दिव्य सर्पों को देखा। व्याख्यागीता अध्याय 11 का श्लोक 15 भगवान के आत्म विराट रूप में अर्जुन को सम्पूर्ण देवता, प्राणी, ब्रह्मा जी, विष्णु, शंकर, ऋषि, नाग इन सबका समूह देखते हैं। अर्जुन पृथ्वी लोक पर बैठे हुए ही, स्वर्ग लोक, ब्रह्मलोक, वैकुण्ठ, नागलोक आदि देख रहे हैं, जो कुछ भी मनुष्य के कहने-सुनने में आता है वह सब परम विराट के एक अंश में स्थित है, सम्पूर्ण सृष्टि परम से ही उत्पन्न होती है उनमें ही रहती है और उनमें ही लीन हो जाती है। फिर भी परम वैसे के वैसे ही रहते हैं।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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