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तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा।
अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा।।
अर्थ उस समय अर्जुन ने देवों के देव भगवान के उस शरीर में एक जगह स्थित अनेक प्रकार के विभागों में विभक्त सम्पूर्ण जगत को देखा। व्याख्यागीता अध्याय 11 का श्लोक 13 अर्जुन ने भगवान के शरीर में एक जगह स्थित अनेक प्रकार के विचारों में विभक्त सम्पूर्ण जगत को देखा अर्थात् चर-अचर, स्थावर, जंगम, चौरासी लाख योनियों वाले शरीर, ब्रह्म में अनन्त लोक आदि अनेक विभागों से विभक्त जगत को देखा, जगत भले ही अनन्त हो पर है वह परम के एक अंश में ही।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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