Logo
अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम्।
अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम्।।

दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्।
सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम्।।
अर्थ जिनके अनेक मुख और नेत्र हैं, अनेक तरह के अद्भुत दर्शन हैं, अनेक आलौकिक आभूषण हैं, हाथों में उठाये हुए अनेक दिव्य आयुध हैं तथा जिनके गले में दिव्य मालाएं हैं, जो आलौकिक वस्त्र पहने हुए हैं, जिनके लालाट् तथा शरीर पर दिव्य चंदन, कुमकुम आदि लगा हुआ है। ऐसे सम्पूर्ण आश्चर्यमय अनन्त रूपों वाले तथा सब तरफ मुखों वाले अपने परम रूप को भगवान ने दिखाया। व्याख्यागीता अध्याय 11 का श्लोक 10-11 संजय बोले! भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को परम ऐश्वर्य विराट रूप को दिखाया, जिनके अनेक मुख और नेत्र हैं। भगवान ने अपनी आत्मा में ही विश्वरूप दिखाया है, अर्जुन को। 
    अनेक दिव्य आभूषण हैं, परमात्मा ने सारे संसार के आभूषण खुद पहन रखे हैं।
    भगवान ने अपने आत्म विराट रूप में चक्र, धनुष, गदा, तलवार आदि अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र उठा रखे हैं।
    आत्म विराट रूप भगवान ने फूलों, सोने, चाँदी, मोती, रत्नों आदि की अनेक प्रकार की मालाएँ धारण कर रखी है। उन्होंने अपने शरीर पर हरे, लाल, पीले, सफेद आदि अनेक और अनन्त रंगों के वस्त्र पहन रखे हैं।
    आत्म विराट रूप भगवान ने कस्तूरी, चन्दन, कुमकुम आदि गंध के तिलक तथा शरीर पर जितने लेप किए हैं वह सब दिव्य हैं।
    इस प्रकार देखते ही चकित कर देने वाले, सीमा रहित और अनन्त रूपों वाले सब और मुख किए हुए अपने परम ऐश्वर्य रूप को भगवान ने अर्जुन को दिखाया।
logo

अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

Follow us on

अधिक जानकारी या निस्वार्थ योगदान के लिए आज ही संपर्क करे।

[email protected] [email protected]