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अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः।।
अर्थ मैं सम्पूर्ण संसार का मूल कारण हूँ और मुझसे ही सारा संसार चेष्टा कर रहा है। ऐसा मानकर मुझमें ही श्रद्धा प्रेम रखते हुए बुद्धिमान भक्त मेरा ही भजन करते हैं। व्याख्यागीता अध्याय 10 का श्लोक 8 देखने, सुनने, समझने में जो कुछ भी आ रहा है, वह सबकी सब परमात्मा की विभूति (रचना) है, यानि प्रभव मूल कारण एक ईश्वर ही है। भगवान कहते हैं कि प्रभव और प्रवृत मुझसे ही है, प्रभव और प्रवृत अर्थात संसार में उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय, पालन पोषण आदि जितनी भी चेष्टाएँ होती हैं, जितनी भी क्रिया, कर्म वे सब मेरे से ही होते हैं। जैसे इलक्ट्रोनिक के सभी कार्य बिजली से होते हैं। ऐसे ही संसार में जितनी क्रियाएँ होती हैं उन सबका मूल कारण परमात्मा ही है। परम प्रभु के सिवाय अन्य किसी की सत्ता नहीं मानना, परम में सम्पूर्ण संसार मानना ही मूल को मानना है। उनमें ही श्रद्धा, प्रेम रखने वाले बुद्धिमान भगत एक ईश्वर का ही आश्रय (शरण) लेकर ध्यान भजन करते हैं। श्रद्धा हो तो ही सत्य समझ आता है, श्रद्धा ना हो तो सत्य तो क्या असत्य भी समझ नहीं आता।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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