अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन।
विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत्।।
विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत्।।
अर्थ अथवा हे अर्जुन ! तुम्हें इस प्रकार बहुत सी बातें जानने की क्या आवश्यकता है जबकि मैं अपने किसी एक अंश में इस सम्पूर्ण जगत को व्याप्त करके स्थित हूँ। व्याख्यागीता अध्याय 10 का श्लोक 42
भगवान कहते हैं कि तुझे बहुत सी बातें जानने की क्या आवश्यकता है यह जो सम्पूर्ण जगत दिख रहा है, जो-जो ऐश्वर्य से युक्त तुमको नजर आ रहे हैं यानि भगवान कह रहे हैं जहाँ-जहाँ भी तुमको सुन्दरता के फूल खिले नजर आ रहे हैं, उन सबको तू मेरी ही विभूती जान और इस सारे जगत को मैं अपनी योग शक्ति से अपने भीतर अंश मात्र जगह मैं धारण करके अपनी जगह स्थित हूँ, यानि सम्पूर्ण ब्रह्म में परमात्मा का वाश है। कण-कण ही भगवान है।
‘‘ जय श्री कृष्णा ’’