दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम्।
मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्।।
यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन।
न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्।।
मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्।।
यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन।
न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्।।
अर्थ दमन करने वालों में दंड नीति और विजय चाहने वालों में नीति मैं हूँ, रहस्यभावों में मौन मैं हूँ और तत्त्व ज्ञानियों में ज्ञान मैं ही हूँ।
हे अर्जुन सम्पूर्ण प्राणियों का जो बीज (मूल कारण) है वह बीज ही मैं हूँ क्योंकि वह चर-अचर कोई प्राणी नहीं है जो मेरे बिना हो।
व्याख्यागीता अध्याय 10 का श्लोक 38-39
दुष्टों को दुष्टता से बचाकर अच्छे मार्ग पर लाने के लिए दण्डनीति मुख्य है।
- नीति का आश्रय लेने से ही मनुष्य विजय प्राप्त करता है।
- जब कोई व्यक्ति मौन में प्रवेश करता है, तभी अपने स्वरूप को पहचान सकता है, कुछ लोग अपने को समझदार दिखाने के लिए, संसार की वाह-वाही के लिए पूरे दिन बोलते रहते हैं, बेवजह सारे दिन बोलने वाले की सच्ची बात पर भी विश्वास करना मुश्किल हो जाता है, मौन में बहुत शक्ति है, मौन व्यक्ति ही ध्यान, समाधि, तत्वज्ञान को जान सकता है, जिसके पास शब्दों का संग्रह है वह मौन यानि शून्य को कभी नहीं जान सकता, संसार में कुछ पाना हो तो दौड़ो-भागो और परमात्मा को पाना हो तो ठहरो मौन हो जाओ।
- हे अर्जुन सम्पूर्ण प्राणियों का मूल यानि बीज मैं हूँ, जैसे मनुष्य, पशु जेर के साथ पैदा होने वाले हैं और अण्डे से पैदा होने वाले पक्षी, साँप, गिलहरी आदि और पेड़ पौधे आदि बीज से, जमीन में पैदा होने वाले केचुएं, जूँ आदि करोड़ों जीव जन्तुओं का मूल यानि बीज मैं हूँ।