बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः।।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः।।
अर्थ गायी जाने वाली श्रुतियों में बृहत्साम और सब छन्दों में गायत्री छन्द मैं हूँ। बारह महीनों में मागशीर्ष और ऋतुओं में वसंत ऋतु मैं हूँ। व्याख्यागीता अध्याय 10 का श्लोक 35
सामवेद में भगवान की श्रुतियाँ (स्तुति) की गई हैं।
वेद में स्तुति और वेदों की जननी गायत्री छंद यानि गायत्री मंत्र में भगवान की महिमा गाई जाती हैं। गायत्री में आत्मा, प्रार्थना, ध्यान तीनों परमात्मा के ही होने से परमात्मा की प्राप्ति होती है। बारह महीनो में मागशीर्ष और चारों ऋतुओं में वसन्त मैं हूँ।