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मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्।
कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा।।
अर्थ सबका हरण करने वाली मृत्यु और भविष्य में उत्पन्न होने वाला मैं हूँ तथा स्त्री जाति में कृति, श्री, वाणी, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा मैं हूँ। व्याख्यागीता अध्याय 10 का श्लोक 34 जैसे पिछले श्लोक में भगवान ने बताया कि सबका धारण पोषण करने वाला मैं हूँ। वैसे ही बताते हैं कि सबके उत्पन्न होने की उत्पत्ति का कारण स्थिति और प्रलय मैं हूँ। स्त्री जाति में ये सातों पूरे संसार में श्रेष्ठ व सुन्दर मानी गई हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि कीर्ति आदि ये सात देवताओं की स्त्रीयाँ है, इनके नामों में गुण भी है जैसे -
  • अच्छी वाणी को धारण करने से संसार में यश-प्रतिष्ठा होती है और जिससे मनुष्य विद्वान कहलाता है वह वाणी ही है।
  • संसार के ऐश्वर्य को ‘श्री’ कहते हैं।
  • प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा, मान, सम्मान को कीर्ति कहते हैं।
  • पुरानी बात या ईश्वर का भाव बार-बार याद आने को स्मृति कहते हैं।
  • बुद्धि को ठीक तरह से याद रहे उस शक्ति का नमा मेधा है।
  • अपनी बात पर डटे रहना, विचलित ना होने का नाम धृति है।
  • दूसरे की गलतियों को माफ कर देना क्षमा है।
यह सब भगवान की ही विभूति है। साधकों को जिस भी व्यक्ति, स्थान में कुछ भी अलग से आभा नजर आए वह उसकी ना मानकर परमात्मा की ही आभा माननी चाहिए।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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