पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी।।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी।।
अर्थ पवित्र करने वालों में वायु, शस्त्रधारियों में राम मैं हूँ, जल जन्तुओं में मगर मैं हूँ, नदियों में मैं गंगा जी हूँ। व्याख्यागीता अध्याय 10 का श्लोक 31
वायु मैं हूँ इस अर्थ को आईये समझें: वायु इस जगत में सबसे ज्यादा आजाद है और वह आजादी ही पवित्रता है, वायु कहीं बंधी नहीं है, कहीं भी ठहरती नहीं है, कहीं भी वायु का लगाव या अस्तित्व नहीं है, वायु एक सतत गति है। जहाँ लगाव होगा वहीं अपवित्रता शुरू हो जाती है, जहाँ पर भी इच्छा होगी वहीं मन ठहरने को करेगा, जहाँ पडाव मंजिल बन जाए वहीं अपवित्रता शुरू हो जाती है। इसलिए तो पहले के संत चलते रहते थे, एक जगह ज्यादा दिन तक ठहरते नहीं थे। उनको पता था एक जगह ठहरने से उस जगह से उन लोगों से कहीं लगाव ना हो जाए, इसलिए वह कभी कहीं कभी कहीं चलते रहते थे। यह जीवन सफर है मंजिल नहीं, चलते रहो, जैसे नदी बहती है तो पवित्र होती है, उसी नदी का पानी कहीं गड़ढे में जाकर रुक जाए वहीं अपवित्रता शुरू हो जाती है, जहाँ प्रवाह सतत हो वहीं पवित्रता ठहरती है।
वायु का पहला लक्षण है कि वह कहीं भी रुकती नहीं और दूसरा लक्षण वायु का है कि वह दिखाई नहीं पड़ती यानि अदृश्य है, और गहरी बात यह है कि वायु अनुभव होती है दिखाई नहीं पड़ती, स्पर्श होता है लेकिन पकड़ में नहीं आती।
जितनी ज्यादा पवित्रता होगी उतनी ही ट्रांसपेरेंसी होगी, जितना पवित्र होगा उतना आर-पार दिखाई पड़ने लग जाएगा। वायु सदा हमारे निकट है हमें चारों तरफ घेरे हुए हैं, वायु हमारा सागर है जिसमें हम जीते हैं लेकिन दिखाई नहीं पड़ता, बिल्कुल पारदर्शी है, ऐसे ही परमात्मा है हमारे साँसों से भी नजदीक लेकिन पता नहीं चलता।
वायु चलती रहती है और पारदर्शी है यही इसकी पवित्रता है भगवान कहते हैं पवित्र करने वालों में मैं वायु हूँ, वायु सब चीजों को पवित्र कर देती है, वायु से ही निरोगता आती है।
शस्त्र धारियों में मैं राम हूँ: राम जैसा व्यक्ति पूरी पृथ्वी पर खोजना मुश्किल है, राम का एक अनूठा आयाम, न तो राम के मन में हिंसा है ना ही ईष्या है और ना ही किसी को दुख पहँुचाना चाहते और ना ही किसी को पीड़ा देना चाहते, फिर भी उनके हाथ में शस्त्र है, अगर रावण के हाथ में शस्त्र हो तो बुरा नहीं लगता लेकिन फूल जैसे राम के हाथ में शस्त्र हो तो समझ नहीं आता। इसका अर्थ यह है कि अगर अच्छे व्यक्ति शस्त्र छोड़ दे तो बुराई को बढावा देना है, अच्छा आदमी मैदान छोड़ देगा तो बुरा आदमी ताकतवर हो जाएगा। बुरे व्यक्ति के पास शस्त्र होगा तो वह बेगुनाह को मारेगा अच्छे व्यक्ति के पास शस्त्र होगा तो वह गुनहगारों को मारेगा। राम जैसे चरित्र का इंसान पूरी पृथ्वी पर नहीं है, फिर भी उनके हाथ में धनुष-बाण अच्छे लगते है, बुरे आदमी के हाथ में अच्छे नहीं लगते।
कृष्ण कहते हैं मैं शस्त्रधारियों में राम हूँ, अर्जुन को बता रहे है जो मैं करता हूँ उससे तू मेरा पता नहीं लगा सकेगा मेरा होना मेरे करने के पार है।
जहाँ शस्त्रधारियों की गणना होती हैं, उन सब में राम श्रेष्ठ है
नदियों में मैं गंगा हूँ: गंगा साधारण नदी नहीं है, एक अध्यात्मिक यात्रा है और एक अध्यात्मिक प्रयोग है, गंगा का पानी पानी नहीं अमृत है और इस अमृत की तुलना पानी से हो ही नहीं सकती। पहाड़ियों में लाखों औषधियों का मिश्रण गंगा के जल में है, गंगा में लाखों लोगों की अस्थियाँ बहाई जाती हैं फिर भी जल पवित्र है, गंगा के जल में हड्डियाँ भी गल कर पवित्र जल बन जाता है, लाखों वर्षों तक लाखों लोगों का उसके निकट मुक्ति को पाना, परमात्मा के दर्शन का बोध हो जाना, आत्म साक्षात्कार को पाना, लाखों लोगों का उसके किनारे आकर अंतिम घटना को प्राप्त हो जाना, वे सारे लोग अपनी जीवन-उर्जा को गंगा के पानी पर उसके किनारे छोड़ गये।